वो सुधार करने आ गए देखो पल्लू को
कहने की जगह मिल गई सारे लल्लू को
अघात करेंगे वो हमारे रीति-रिवाजों को
पालें हैं आधुनिकता के नाम पे सारे बुराई को
ईमान ,ज्ञान छोटा है खुद के अंदर झांकने को
कांपते हैं उंगलियां खुद को बुरा कहने को
जिसकी नीयत है बहुत बुरी वो क्या जाने
मज़ा आता है अच्छी बातों को गलत कहने को
उसके कोई मतलब नहीं है दुनियादारी से
सिर्फ बहलाना,फुसलाना जिसे जानने को
-राजकपूर राजपूत
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