हम अकेले बहुत हैं
सफ़र में चलें बहुत हैं
ना डर आंधियों का
ये इरादों से हिले बहुत हैं
आदत है ठोकरें खाने का
लेकिन हौसले बहुत हैं
साथ ना देगा ज़माना
आदमी अकेले बहुत हैं
यकीनन कठिन है सफ़र
कांटे,पत्थर मिलें बहुत हैं
अपनी अपनी जिंदगी है यारों
लेकिन जो मिलें बहुत हैं
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