ये ऊॅ॑ची-ऊॅ॑ची इमारतें सुना सा लगता है
तेरे शहर में हर कोई अकेला सा लगता है
बेशक झिलमिलाते हैं कई रंगीन बल्ब मगर
मेरे गांव में चाॅ॑द सितारों का मेला सा लगता है
हाॅ॑ तुझे मुबारक हो ये सोफे-गद्दे, ये ऊॅ॑ची इमारतें
मैं हूॅ॑ जमीं का आसमान कहाॅ॑ अच्छा लगता है !!
मैं तेरे शहर नहीं आऊंगा
तेरी ऊंची बिल्डिंग की वजह से
न सूरज दिखता है
न चांद दिखता है
न रौशनी दिखती है
न छांव दिखती है
सिर्फ दिखते हैं
तेरे बनावटी बल्ब
जिसे खरीदें हो
किसी दुकान से !!!!
तेरे शहर की खासियत है
बनावटी और सजावट में
तुम्हें गुरूर होगा
शहर गांव से बेहतर होगा
मगर मैंने देखा है
बाहर से भीतर का सुनापन
जो अकेले हैं !!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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