अवहेलना भाग ४

वह सोचने लगी

शायद ! दीपक के हृदय में मेरी भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है । उसे बस अपनी ही फ़िक्र है । और यहीं बेफिक्री उसे खलती थी । जिंदगी जिसके साथ गुजारना है । उसी को जरा सी परवाह नहीं तो खुशियाॅ॑ कहाॅ॑ से आएगी । 

वह चाहती थी कि ना सोचें,, फिर भी मन के किसी कोने से सवाल उठ ही जाते थे । वह सोच-सोच के परेशान हो जाती थी । लेकिन उसे कोई राह नहीं सूझती । 

फिर सोचने लगी कि इससे अच्छा हैं मैं क्यों ना अनीता के पास चली जाऊॅ॑ । उसके पास मेरा मन बहलता रहेगा । उसका हृदय साफ़ है । छल कपट नहीं जानती , उससे बातें करके मन को तसल्ली होती है । वहीं एक तो है जो दिल की बातें सुनती है ।  

जब आदमी किसी बात को लेकर परेशान हो जाते हैं । रह रह के दिल में आवाज़ें उठे और खुद से बातें करके थक जाएं तो ऐसे में कोई सुनने वाला मिल जाए तो बहुत तसल्ली होती है । अनीता ज्यादा समझदार तो नहीं थी ,,, और अभी उम्र ही क्या हुई है ! बालपन है । थोड़ा वक्त लगेगा उसे समझने में । फिर भी अपनी बात उससे ही खुल के कह पाती है । जिससे अपनापन का एहसास हो जाता था ।  

अनीता शाम होने का इंतजार कर रही थी । थोड़ी और शाम होगी तब खाना बनाना शुरू करेगी । चलों ! अभी वो भी खाली ही है ।

लेकिन कल्याणी, अनीता के पास नहीं गई । वह घर के ऑ॑गन मेंं आकर खड़ी हो गई । मानों कुछ सवालों का हल ढूॅ॑ढ रही हो । इघर -उधर टहलने लगी । 

घर के ऑ॑गन में जामून के पेड़ है । जिस पर गौरैयों का झुंड चहचहा रहे थे । अपने बच्चों को पेट भर खाना खिला के, शायद !  नाच रहे थे । अपने घोंसले के आसपास । ऐसा लग रहा था मानों सभी भगवान को धन्यवाद कर रहे थे । जो उसके हिस्से का दाना दे दिए । दिनभर के तलाश के बाद  । जिसके कारण उसके परिवार सुरक्षित है । अपने परिवार में कितना खुश थे । शाम के समय उन्हें फुर्सत मिलते हैं । अपने बच्चों को निहारने के लिए । जिसे जाहिर कर रहे थे ।अपने घोंसले के आसपास फुदक कर । 

कल्याणी ने जब ताली बजाई तो सभी चिड़ियों का चहचहाना बंद हो गई । यह सब उसे अच्छी लग रही थी । कुछ देर चुपचाप खड़ी रही । गौरैया फिर चहचहाने लगे । फिर से ताली बजाई और गौरैयों का चहचहाना फिर बंद हो गया । दो-चार बार दोहराने के बाद उसे लगने लगी कि वह इन सबको व्यर्थ ही परेशान कर रही है और चुपचाप उसकी खुशियों को महसूस करने लगी । 

कुछ देर बाद वहाॅ॑ अनिता आ गई । 

"क्या देख रही हो दीदी !!!"

"कुछ भी नहीं । ऐसे ही । इन चिड़ियों को देख रही हूॅ॑  । कितना खुश हैं,,, है ना । "

" दूर से लगते हैं । क्या पता अकेले में झगड़ा होते होंगे ! दिनभर उसके पीछे तो नहीं घुमते है । "

" तुम्हें क्यों ऐसा लगता है ,,,।  इन्हें देख के कितना सुकून का एहसास हो रहा है ।" 

"मुझे इन्हें देख के कुछ भी एहसास नहीं हो रहा है । " उसने अपनी असहमति जताई ।  

" क्यों ? "

"मेरे अन्दर अलग ही विचार आ रहा है । जो मुझे बार बार परेशान करती है । इसके कारण होगा ।'' 

" क्या हो गया !! विनोद तो अच्छा लड़का है । "

"अच्छा बनने से क्या होता है  ? पास जाने से पता चलता है । ढोल में पोल होते हैं ।"

"आखिर बात क्या है ?" कल्याणी ने जोर देकर कहा । 

" एक दिन की बात है । जब वो मेरे पास आया तो कहने लगे । शादी से पहले तुम भी किसी के चक्कर-वक्कर में रही होगी । अक्सर लड़कियों को देखा हूॅ॑ । इश्क़ -विश्क फरमाते ,,, मस्ती किए होंगे ।

नहीं तो,, मैंने कहा । 

मैं कैसे यकीन करूॅ॑ । 

यकीन करना पड़ेगा । क्योंकि मुझसे शादी किए हो और रिश्ता विश्वास पर चलता है । 

शादी से पहले हमारे तो बहुत थे । 

एक पल के लिए मैं उसे देखने लगी । कैसा आदमी है जो इतनी आसानी से कह दिया । मेरी थोड़ी सी भी परवाह नहीं है । अभी शादी को साल भर नहीं हुई है और ऐसे शंका करते हैं ।  गुस्से से मैंने भी कह दी । 

जैसे तुम्हारे वैसे मेरे । उसके बाद क्या था ।रोज हंसी-मजाक,, ढेरों मीठी-मीठी  बातें जो वो करते थे । वहीं आजकल मुॅ॑ह फुला के रहते । मुझसे खिझते है । दस पंद्रह दिनों से कुछ दूरी बनाएं हुए हैं । ढंग से बात भी नहीं करते हैं । आप ही बताओ दीदी मैंने कुछ गलत कहा । उसी के जवाब में (जो मजाक रुप मेंं कही बात) जवाब दिया हूॅ॑ । इतना बुरा मानेंगे, मैंने सोचा नहीं था । 

कल्याणी मन ही मन मुस्कुराने लगी । फिर अचानक खिलखिला पड़ी ।

"तुम लोग भी ना,, अभी अभी शादी हुई है और ऐसी बातें करके,,,क्यों बिना मतलब के ऐसे पल को खोते हो । " अपनी हॅ॑सी को रोकते हुए कही । 

"इसमें हॅ॑सने वाली क्या बात है । "

"नहीं कहना था । पुरूष सहन नहीं कर सकते हैं । एक औरत की अपेक्षा जल्दी बुरा मानते हैं । औरतों पर अधिकार जताते हैं । " कल्याणी ने कहा 

"क्यों ? जब वो मेरे सामने किसी का नाम ले सकते हैं , तो मैं क्यों नहीं ? क्या मेरा अधिकार नहीं उस पर !! " नाराजगी के साथ वह बोली । 

"औरत का पुरुष बिना पहचान नहीं । हमेशा पुरुष की पहचान में रहना पड़ता है । औरत इसी में खुश रह सकती है ।" 

आप गलत सोचती हो । जब तक औरत के भावनाओं का सम्मान नहीं करेंगे तब तक कोई पुरुष कभी भी खुश नहीं रह सकते हैं । 

लड़ कर देख लो । हमेशा औरत ही हारती है ।  

देखते है । 

तभी अचानक उन दोनों की नजर सासु मां पर पड़ी । देखते ही दोनों के चेहरे का रंग उखड़ गया । आखिर ये....

                 क्रमशः


                                        


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