A Father's Happiness Story आज ही धान की बुवाई हुई थी ओर रात में बरसात अधिक हो गई । अभी बीज अंकुरित हुआ है । खेत में पानी अधिक हो जाने से बीज सड़ सकता है । दीनदयाल को बहुत चिन्ता होने लगी । आमने-सामने के खेत वाले अपना सारा पानी उसके खेत की ओर छोड़ न दे । सुबह जल्दी उठकर जाऊंगा । इसी चिंता में सो गया ।
A Father's Happiness Story
दीनदयाल की एक आदत थी । घर में पैदा होने वाले फलों को सुबह-सुबह अपने परिवार के साथ खाने के लिए कहते थे । गरीब किसान आदमी था । सेब और केला जैसे महंगे फल तो खरीद कर खा नहीं सकते थे । घर में उपलब्ध चीजें जैसे खीरा, पपीता, और अमरूद आदि, ये जब पक जाते थे या फिर खाने लायक हो जाते थे । पूरे परिवार को खाने के लिए प्रेरित करते थे । सुबह फलाहार हो तो अच्छा है । बाद में खाने से उतना फायदा नहीं मिलता है । जितने फायदे सुबह-सुबह खाने से मिलते हैं । उनका मानना था ।
उस दिन जब दीनदयाल कुदाली ले कर घर से निकल रहा था । तब उसकी पत्नी ने कहा -
" पपीता काटा हूं । खाकर जाना ।"
"नहीं, मैं मेड़ को खोल कर जल्दी से आ रहा हूं । रात भर की बरसात से खेत पानी से भर गया होगा । तब-तक तुम लोग खा लो ।"
और वो जल्दी-जल्दी खेत चला गया ।
पूरे खेत में पानी भर गया था। गांव की मुख्य पानी की धार उसके खेत से ही गुजरती थी। वह कई बार बगल के खेत वालों से कह चुके थे कि धार को दूसरी दिशा में मोड़ दिया करो, क्योंकि मेरा खेत छोटा है और पानी अधिक होने से धान की फसलें गल जाती हैं। मगर वे मानते नहीं थे, क्योंकि उनको सारा पानी अपने खेत से ही गुजरना पड़ता था, जिससे उनकी फसलें भी बर्बाद हो जाती थीं। इसलिए वे अपना मेड़ कसकर बांध देते थे।
जिससे सारा पानी दीनदयाल के खेत में आ जाता था । साल की यही प्रक्रिया थी । कुछ कह नहीं सकते हैं । उसके आने से पहले ही बगल के खेत वाले ने पानी की धार उसके खेत की ओर मोड़ दिया था ।
दीनदयाल एक सीधा-सादा आदमी था। हर कोई उसे दबा देता था, क्योंकि उसे बहस करना नहीं आता था और न ही लोगों को अपने पक्ष में करने के तरीके पता थे। कई बार उसने बस्ती वालों को बुलाया, मगर सभी ने उसे ही समझा दिया। बगल के खेत वाले प्रभावशाली थे और स्थानीय नेताओं से उनके अच्छे संबंध थे, जिससे सभी उनसे डरते थे।
अब राजनीति से न्याय होता है, न कि न्याय से राजनीति। जिसके पास जमीन-जायदाद अधिक है, सभी उसके पक्ष में हो जाते हैं। जो लोग गला काट रहे हैं, उन्हीं का दबदबा है आजकल समाज में। अब पंच परमेश्वर का जमाना नहीं रहा।
भले ही दीनदयाल सीधा सादा था । लेकिन इस बात को अच्छी तरह से जानता था ।अब राजनीति कैसे गांव में हावी हो गई है । उसने चुपचाप अपने खेत का मेड़ खोल दिया । सारा पानी कल तक निकल जाएगा । दो दिनों में कुछ नहीं होगा ।
घर आते समय अपनी विवशता से थक गया था । सोचने लगा - पानी की धार उस ओर चली जाती तो जल्दी से खेत खाली हो जाता । मगर क्या करें ? आजकल दूसरों की परवाह कौन करता है ! सभी लोग अपनी सुविधाओं को देखते हैं ।
घर पहुंचा तो देखा कि पत्नी और बच्चे ठहाके मारकर हंस रहे थे। दीनदयाल का दस साल का बेटा अपने नाना की एक्टिंग करके दिखा रहा था, जिसे देखकर उसकी मां बहुत हंस रही थी। उसकी बेटी भी खिलखिलाकर हंस रही थी। वह अपने नाना जैसी भाव-भंगिमा कर रहा था।
-राजकपूर राजपूत
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