अवहेलना भाग २


                   
कल्याणी जब सुबह उठी तो वहीं रोज की जिंदगी थी । बर्तन मांजना,धोना,, झाड़ू लगाना,,और वो काम जिसे नित्य प्रतिदिन करती थी । उदासीनता उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी । थका हुआ मन,या यूं कहिए कि उसका मन किसी भी कामों में नहीं लगता था  । 
वह सोचती -जब सभी लोग उसकी बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं है तो फिर क्यों वो किसी के बातों को सुन के अपना मन खराब करती है । भूलने की कोशिश करती । मन ही मन खुद से वादा करती ।  अब वह भी किसी की बातों की परवाह नहीं करेंगी । लेकिन कैसे ..? जो चीज रोज उसके सामने गुजरती है उसे वो कैसे नजरअंदाज कर सकती हैं .. ! इसके लिए भी कुछ सहारा चाहिए । अवलंबन चाहिए,,, जिस पर ठहरा जाय । सोचती लेकिन जवाब नहीं ढूंढ पाती । 

कल्याणी अपनी खुशी अपने बच्चे में तलाशने की कोशिश करती । उसके चेहरे को देखती तो हृदय, कशक (पीड़ा) से भर जाते थे । मेरा मासुस बच्चा..! जल्दी से बड़े हो जाय । तू मेरी ऑ॑खों का तारा है । बड़े होकर मेरा सहारा बनेगा । अब तुझे ही देख के मुझे खुशियाॅ॑ मिलती है । मेरे राजदुलारा..!
वे अपने कमरे में बैंठी थी । अपने बच्चे के साथ ।  खुद से ही कई बातें करते हुए । भविष्य के लिए । सपने बुन रही थी । बहुत अच्छा लग रहा था उसे । अपने बच्चे का मासुम चेहरा । माॅ॑ की गोदी में जो खिलखिला रहे थे । मानों सुरक्षित घेरा में हो ।  जिसे देख कल्याणी आनंदित थी और उसका बच्चा भी ... ममता की छांव में ।
 
लेकिन कुछ ही पल में डर भी जाती । अभी अबोध बालक है । जब समझ बढ़ेगी तो कहीं दूर ना हो जाए । क्योंकि घर में जो मेरा सम्मान है । उसे बड़े हो कर जरुर समझ जाएंगे ।उस समय कहीं मुझे कमजोर ना मान लें । अहमियत का एहसास लोगों को सभी जगहों पर सम्मान दिलाते हैं ।जिसका प्रभाव होता है उससे सब भय खाते हैं । और जिसका कोई सम्मान नहीं उसके बातों की प्रभावशीलता भी नहीं रहती है । लोग अवहेलना करने लगते हैं । घर हो या पड़ोसी ।  
डर और शंकाओं में उसकी खुशी कहीं खो गई । गहरी सोच में पड़ गई ।
उसी समय दीपक कमरे में आया । जो बहुत खुश नजर आ रहे थे । आते ही कल्याणी से कहा-
"क्या बात है ! माॅ॑ -बेटे बहुत खुश हो । "

"कुछ भी तो नहीं है । हमें किस बात की खुशी होगी !  "
"फिर भी,,, चेहरे की चमक बता रही है ।" 

कल्याणी ने उदासीनता दिखाई । वह कुछ भी नहीं बोली ।  जिसे देखकर दीपक चुप हो गया । उसे अहसास था कि उसका दिमाग और दिल घरों की बातों को भुलते नहीं है । दिन भर सोच- सोच के अपने व्यवहार को खराब कर चुकी है । यदि एक दो बातें औरतों के हृदय में बैठ गई तो उसे अंदर से निकाल पाना मुश्किल हो जाते हैैं । ये औरत जात ही ऐसी होती है । दिमाग नाम की कोई चीज़ ही नहीं है । सिर्फ घरों में ही उलझे रहते हैं ।वह सोच रहा था ।
फिर दीपक ने अपनी चुप्पी तोड़ी  -
 
" चलो ! मैं तुम्हें आज पास के शहर घुमा लाता हूं । मुझे कुछ काम है । तुम भी कुछ खरीद लेना । "

कल्याणी को विश्वास नहीं हो रही थी । दीपक को एकटक देखने लगी । कभी उसको साथ नहीं ले गए थे । उसे तो बस घर की चिंता थी । कहीं उसके घर वाले यह ना कहें कि वह जोरू का गुलाम है । अपने घरवालों की परवाह बहुत करते थे । इस बात को दिखाने का प्रयास वह कई बार कर चुके हैं ।पत्नी का गुलाम नहीं है ।  कई बातों को समझते हैं लेकिन वह अपने घर परिवार का ख्याल करके दूरी बनाए रखे हैं ।

"मैं मजाक नहीं कर रहा हूं" दीपक ने कहा  ।
 
"मैं क्या खरीदूंगी । जो घर में है वहीं पर्याप्त है ।जाओ तुम । "

"पति कह रहा है फिर भी,,, बहाने कर रही हो । इतनी उदासीनता भी अच्छी नहीं । पगली हो जाओगी । चलो ! तैयार हो जाओ । "
इतना कहके दीपक सिंगारदान (पेंटी) लाकर रख दिया । और गाड़ी को घर से निकालने के लिए चला गया ।

 कल्याणी का उदास मन ऐसे ही छोटे- छोटे पल के लिए बरसों से तरसते थे ।  जिसे आज दीपक ने उसे देने की कोशिश की है । उसका अंतर्मन खुद को कोस रहा था । बहुत जल्दी निराश हो जाती हूं । उनके भी अपनी समस्या होती है । दिनभर खेती बाड़ी के कामों से थक जाते हैं ।देख रेख में भी तो मेहनत लगती है । मैं भी कभी हॅ॑स के बात नहीं करती हूं । उसे समझने मेंं कोई गलती तो नहीं कर रही हूं । 
दीपक के अधिकारपूर्ण बातें से उसे बहुत खुशी हो रही थी । काश ! मुझपर हमेशा अधिकार रखते ,, मेरी खुशियों को देने का ख्याल रखते,, तो मुझपे ये उदासियां नहीं आती । 
खुशी- खुशी वह तैयार होने लगी और दीपक भी अपनी गाड़ी को घर के बाहर(गली में) निकाल के साफ सफाई करने लगा । थोड़े- बहुत धूल जम गए थे जिसे वो झाड़ने लगे । 
 कुछ ही समय हुआ था और शालिनी (दीपक की बहन) आ गई । अपने भाई से कहने लगी -

"कही जा रहे हो क्या भईया । "
"हाॅ॑ , बेमेतरा "
"मैं भी जाऊंगी"
"क्यों'"
"मुझे भी कुछ समान खरीदना है । माॅ॑ से कुछ पैसा मांग के लाती हूं ।" 

इतना कहके शालिनी जाने लगी ।
"अरे ! रूको । तुम्हारी भाभी भी जा रही है । उसके साथ तुम जाओगी । नहीं ना..! दुसरे दिन चली जाना । आज उसे भी कुछ समान खरीदना है । "
"उसकी बड़ी चिंता है और बहन की नहीं । किसी दूसरे दिन उसको ले जाना ।"
मुझे खेतों का देखरेख करने में समय नहीं मिल पाता है । आज तुम्हारी भाभी को कह चुका हूॅ॑ ।उसको बुरा लगेगी । 
"और मुझे । "
इतना कहकर शालिनी गुस्से से अपने कमरे में चली गई ।दीपक असमंजस में पड़ गया । पता नहीं इस घर के लोगों को क्या हो गया हैै । थोड़ी सी बातों से नाराज़ हो जाते हैं । 
अब दीपक को खुशी नहीं रहा । वह बेवजह तनाव महसूस कर रहे हैं । किसको समझाएं ! समझ नहीं पा रहे थे । 
गली से जब वह अपने कमरे की ओर जा रहा था । माॅ॑ और शालिनी  की बातें सुनाई दे रही थी -

"आजकल के बेटे को कौन समझाए । शादी क्या हुई,,बस कुछ दिनों में ही माॅ॑ -बाप को भुल जाते हैं । लाड़ प्यार से पालों- पोसो बीबी आने के बाद भुलने में देर नहीं करते हैं । विनोद (छोटा बेटा) तुम्हें कल ले जाएगा । चिंता मत कर । "

माॅ॑ की बातें सुन दीपक के शरीर में सुन्नता दौड़ गई । ऐसा लगा कि शरीर में थकावट आ गई हो । इतना कुछ करो फिर भी..! सब बेकार...। सिर्फ एक दिन किसी के मन के विपरीत कुछ काम कर दो ..दूरी का एहसास होने लगते हैं । चाहें घर हो या फिर बाहर...!  क्या हमारी जिंदगी नहीं है..?
जिससे प्रेम की भावना हो..उसी से शिकायत होती है । दीपक को बहुत दुःख लग रहा था । वह कभी भी अपने घर परिवार के विरुद्ध कोई काम नहीं किया है । हमेशा उसने माॅ॑ की चिंता की है । उसकी चाहतों का हमेशा ख्याल रखा । मेरी माॅ॑ ना जाने क्यों मुझे समझने की कोशिश नहीं करते हैं  ! सिर्फ शादी हो जाने भर से क्या वो दूर हो गए !     
वह सोचते-सोचते अपने कमरे में चला आया । कल्याणी तैयार हो रही थी । दीपक का चेहरा देख वह कहने लगी- अब क्या हुआ ?
                                     क्रमशः
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