मोमबत्ती के तले में भी अंधेरा है

मोमबत्ती और दीए - आजकल के लोगों में एक फैशन सा चल पड़ा है कि पुरानी सारी रिती रिवाजों के विरूद्ध तंज कसने का । लेकिन वो भूल जाते हैं । अपनी बुराई को । अपनी सीमा को । कब उसने जरूरी चीजों पर अपनी बुद्धि का प्रहार अनावश्यक रूप से किया है । 

कविता हिन्दी में 👇👇👇


औपचारिक है
कुछ बातें
कुछ मुलाकातें
एक व्यापारी के लिए
समान और ग्राहक के
बीच का रिश्ता
बिना लगाव के
बने रहते हैं
लेन देन चलते हैं 
व्यवहार में 
एक सभ्य समाज के लिए
ज़रूरी हो सकती है
उसके विकास की
धारणाओं के लिए
या फिर
कुछ मजबूरी होती है
जिसमें टिकना पड़ता है
सब कुछ समझने के बाद
उदासीनता के साथ 

औपचारिक है
न्याय व्यवस्था
कुछ बुद्धिजीवियों के लिए
एक ढोंग हो सकता है
मोमबत्ती जलाने की क्रिया
जो सुविधा अनुसार
जलते और बुझते है
दीयों की तरह
मोमबत्ती के तले में भी
अंधेरा है
-----राजकपूर राजपूत "'राज"'

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