It's Easy to Criticize कर्म प्रधान न हो करके आजकल आलोचनात्मक दृष्टि को महान् कार्य मानते हैं । पढ़ाई लिखाई कुछ भी हो लेकिन डिग्री मिल जाए तो वह शिक्षित हैं । जिससे नफ़रत है उसकी आलोचना जरुर कर देते हैं । भले उसकी गहराई पता न हो । उसकी अनुभूति की न हो । लेकिन तर्क करते जरूर हैं ।
It's Easy to Criticize
आलोचना करना
सहज है
ईश्वर के प्रतिमानों से लेकर
कुछ सच्चाइयों पर
संदेह करना
आसान है
किसी के प्रेम पर
लेकिन यह भी
ज़रूरी नहीं हैं कि
तुम सच हो
किसी सच्चाई को लेकर
तुम्हारे दृष्टिकोण
पहुंच गए हो
वहाॅ॑ तक..
जहाॅ॑ एक प्रेमी
अपने दर्द में,, पीड़ा में
सुकून तलाश लेते हैं
जिसमें स्थिर रहते हैं
सदा...
तुम्हारा यूॅ॑ सवाल खड़े करना
जवाब कम दे जाना
मन को
आंदोलित करके
छोड़ देना
बेचैन कर देते हैं
मेरे प्रेम की
स्थिरता को
जबकि..
मेरी चाहत है कि
तुम स्थापित करो
मेरे प्रेम से बड़े
नए प्रतिमान
जिसमें स्थिर हो सके
ये सारी दुनिया
लेकिन..!
यह मुश्किल है
तुम्हारे लिए
कठिन है
मेरे प्रेम की राह
इसलिए..
सुविधा की बातें करते हो
जहाॅ॑ प्रेम नहीं है !!!
उसने थकाने के लिए
ईश्वर पर सवाल उठाया
जैसे कह रहा हो
उसके पास कोई नैतिकता नहीं है
नहीं जिम्मेदारी
जो मर्जी कह सकता है
उसकी अभिव्यक्ति है
इस तरह बोलते बोलते
नग्नता का प्रदर्शन करने लगा !!!
आजकल के विद्वान
कर्म से नहीं
तर्क से सही
उदाहरण जीवन दर्शन के
तर्क के आघात से
जिसकी पहचान नहीं
आजकल के विद्वान
कर्म से नहीं
नफ़रत आते
आघात लगाते हैं
अपने चेहरे छुपाकर
दूसरों का बताते हैं
ऐसे करके महान सही
आजकल के विद्वान
कर्म नहीं !!!!
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---राजकपूर राजपूत''राज''
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