मैंने कई आवाजें सुनी है
अंतर्मन की
जो बाहर सुनाई नहीं देती है
इस कोलाहल में
अंतर्द्वंद्व की बातें
अपने भीतर,, अंतर्मन मेंं ही
गूंजित होते हैं
कई सवालों के साथ
तलाशते हुए
मेरा मन
कुछ निर्णय
लेने के लिए
कुछ वादा करते हुए
जिंदगी जीने के लिए
खुद में विचरता है
अपने अस्तित्व की
तलाश में
निरंतर
प्रयासरत हैं
---राजकपूर राजपूत''राज''
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