ये दर्द भी कितना मीठा है
तेरे सिवा ये दुनिया झूठा है
सम्भाल के रखे हैं यादें तेरी
ऑ॑सुओं के हर बुंद मीठा है
बसाऊॅ॑ कहाॅ॑ में दुनिया को
दिल में जो तु ही बैठा है
तड़प- तड़प के आहे भरे
किस्मत न जाने क्यों रूठा है
अपना सुध बुध न राख सके
मिलन की चाह दिल में उठा है
आ भी जाओं मेरे हमसफर
तेरे बैगर ये मौसम रुठा है
---राजकपूर राजपूत''राज''
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