पाखंडी The So-Called Intelligentsia

The So-Called Intelligentsia पाखंडी वही है जिसके सीने में कुछ और बातें हो,,, और व्यवहार में बनावटी महानता के भाव हो । लोगों को दिखाने के लिए.. । कोशिश यही रहती है कि उसकी बातों को लोग समझ ना पाए । ध्यान बांटने के लिए छलावा रूप धारण करते हैं । दुनिया को उलझा के अपने हित साधते रहे । ऐसा इसलिए करते हैं ताकि लोग उसपर गौर ना कर सकें । 

The So-Called Intelligentsia 


बातें लोगों की जरूरत पर ही करते हैं लेकिन उसका लक्ष्य स्वयं के हित ही होते हैं । ज़्यादातर लोगों की मानसिकता को बदल कर अपने अनुकूल करने का प्रयास रहता है । धीरे-धीरे ही सही इस काम को बखूबी वे करते हैं । अपने हितों के सामने दूसरों की भावनाओं का कोई महत्व नहीं देते हैं । अपना हित तो फिट । बाक़ी समय बस अवहेलना करते हैं दूसरों का । दूसरों के लिए किया गया प्रयास भी स्वयं के हितों की नींव पर टिकी रहती है ।हर माहौल में अनुकूल हो जाते हैं । स्वयं के अभिमान,, सम्मान की अपेक्षा अपनी सुविधा और हितों को प्राथमिकता देते हैं । 

पाखंड 


लोगों में अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ भी कर गुजर सकते हैं ।  एक बार किसी की मानसिकता में कोई बात डाल दिया जाएं । तो उस आदमी के अंदर दूसरा विचार आना मुश्किल हो जाते हैं । सोच उन्हें बताएं गए कुछ विचारों तक ही सीमित हो जाती है । यह अवस्था ब्रेन वाश की है । ब्रेन वाश होने के बाद आदमी उस व्यक्ति के प्रति अपार श्रद्धा दिखाते हैं । भले ही खुद की हित ना हो लेकिन जिसके प्रति श्रद्धा है उसका जरूर लाभ होता रहे । ऐसा करके उसे मानसिक संतुष्टि मिलती है । हैरानी की बात यह है कि वह पूरी तरह से पिछलग्गू बन जाते हैं । उसका दावा ज्यादा मजबूत नहीं रहता है। वह अपने इष्ट के इरादों पर निर्भर रहते हैं  ।

पाखंडी लोग 


 पाखंडी लोग अपने हितों को साधते समय भी महान बनते हैं । बातें मीठी-मीठी और इरादें खतरनाक होते हैं ।ऐसी कला को भी अपनाना भी एक कला है । 
इरादें दिखाई ना दे । विचारों को इस ढ़ंग से प्रस्तुत किया जाएं कि लोग आसानी से समझ ना पाए। बस दूसरों की लकीर को काट कर बड़ा बनने में अच्छा लगता है । 
संसार में जितने ज्ञान की बातें हैं,,,सब जानते हैं । समाज में उसकी अहमियत,,, आवश्यकता,, और मांग की अपील करते हैं । लोगों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं । हालांकि की उसके सीने में इस बात का कोई मायने और सम्मान नहीं होते हैं । 
ऐसे विचारों को आज-कल बुद्धिमत्ता का प्रतीक रूप में देखते हैं । जब समाज स्वीकार कर लें या समाज में चलन हो जाते हैं तो स्वयं का हित साधना नैतिक अधिकार हो जाता है । हालांकि इसे समाज सार्वजनिक रूप में स्वीकार नहीं करते हैं लेकिन दबी बातों में सबकी चाहत होती है । दहेज के समय समानों को गिनना,,,, जनप्रतिनिधियों और नौकरीपेशा लोगों से ऊपरी कमाई पुछना,,, सभी रवैया भ्रष्टाचार का समर्थन है ।  पछतावा बदलते विचारों के प्रति एक व्यवहार है जो बातचीत करने का माध्यम रूप में अपनाते हैं । इसके सिवा कुछ नहीं । 
यह किसी संस्था या दल से लेकर हमारे आसपास के व्यक्ति के रूप में हो सकते हैं । लेकिन कह नहीं सकते हैं,,,,,, क्योंकि वही हथियार उपयोग करते हैं जिससे आप सच्चाई के लिए इस्तेमाल करते हैं । झूठ,सच को सुविधा के रूप में उपयोग करते हैं लेकिन सच झूठ का इस्तेमाल करेगा तो निश्चित है पराजित हो जाएगा ।

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-----राजकपूर राजपूत

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