अब के लोग ये चलते हैं किस तरह

अब के लोग ये चलते हैं किस तरह 
जिंदगी को जीए ना जिंदगी की तरह

लिव-इन रिलेशन है सहुलियत उसकी
ना जाने ज़हर पी गई मीरा किस तरह 

फर्क हैं दुनिया भर से उसमें कई बात
जिसके सीने में है झूठ ईमान की तरह

दिल का ख्याल अलग हो सकता है मगर 
वो जिद करें आदमी ना हो आदमी की तरह

दिमाग से जलते हुए दिल से बुझते हुए
उड़ रहे हैं धूएं बुझे हुए दीपक की तरह

कठिन मानते हैं आजकल इश्क को 'राज'
मनमाफ़िक नहीं इश्क़ लैला मजनू की तरह

-----राजकपूर राजपूत "राज"



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