सब कुछ कह जाती है तुम्हारी ऑ॑खें
मुश्किल है जीना यहाॅ॑ एक दूजे के बिना
मिलते ही बयां करती है तुम्हारी ऑ॑खें
मिल के जाना अपना वजूद यहाॅ॑ क्या है
खुद का चेहरा पाता हूॅ॑ आईना है तुम्हारी ऑ॑खें
पास आते ही अहसास हुआ कितना दर्द है
बरसों से तलाश रही थी मुझे तुम्हारी ऑ॑खें
-----राजकपूर राजपूत "राज़
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