हमने जीना छोड़ दिया है क्या Have we Given up on Living? Poem

 Have we Given up on Living? Poem in Hindi 

हमने जीना छोड़ दिया क्या?

पर्वतों को निहारना और

हवाओं को छूना छोड़ दिया क्या?


बरसी बदरिया,

पेड़ों की रंगत निखर गई,

ओस की बूंदें

हरी-हरी दूबों से उतरना छोड़ दिया क्या?


अभी तड़पी थी धरती,

अभी जला था सूरज,

दीए की लौ संग-संग

पतंगा जलना छोड़ दिया क्या?

Have we Given up on Living? Poem in Hindi 

वो अतस की पीड़ा थी,

दो जोड़ियों की क्रीड़ा थी,

अभी रूठे, अभी मनाएं,

प्रीत में जीना-मरना छोड़ दिया क्या?


बदले हैं लोग,

समय चलता रहा,

कौन कहता है कमी है दुनिया में?

शिकायत की बातों में,

आदमी बदलता रहा।


हमने देखा है दुनिया में—

दो जून की रोटी न मिले मगर,

उसने जीना छोड़ दिया क्या?


 


शराब पीने वाले पी कर सच बोल देते हैं



लेकिन नहीं पीने वाले तो झूठ आसानी से बोल देते हैं !!!


शिक्षित होने का मतलब है

चलन में है उसे अपनाने से मतलब है

अच्छे कपड़े और अच्छी बोली

मतलब निकालने से मतलब है !!!!


भीड़ में जो शामिल हैं

भीड़ में चलने के काबिल हैं

मत उम्मीद कर यहां किसी से 

स्वतंत्र सोच नहीं , सभी भीड़ में शामिल हैं !!!!


प्रोग्रेसिव विचार हो सकते हैं

लेकिन किसी मुर्ख के गुलाम हो सकते हैं

एक में चुप्पी और दूजे पर मुखर हो सकते हैं

नालायक हैं भले ही बुद्धिजीवी हो सकते हैं !!




वो जंगल के बीचोंबीच,

नहीं किनारों पर पनपते हैं



नहीं खेत खलिहानों में

नहीं बाग-बगीचों में


वो ऊग आते हैं

अनायास ही

पुराने जर्जर भवन पर

किसी पेड़ के खोल में

जहां उसे मिलती है

बिषम परिस्थितियां

अस्तित्व के जद्दोजहद के साथ

जीने का प्रयास करता हुआ

हर दम अकेला हुआ

मगर हरा-भरा सा 

संक्षिप्त जीवन !!!!

Have we Given up on Living? Poem in Hindi


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