कमी - जीवन की Short-life story

Short-life story माधवी अच्छी लड़की थी ।‌ रूप, रंग से लेकर पढाई-लिखाई  तक ।चेहरे पर सादगी खूब जंचती थी ।‌उसे दुनिया की चकाचौंध भाती नहीं थी । बस कमी थी तो दोनों पैरों की उंगलियां जो पूरी तरह से विकसित नहीं हुई थीं । पैदा होने के समय से ही ऐसी थी  । 

फिर भी , उसे इस बात का विश्वास था कि अपनी कमी को मेहनत और लगन से पूरी कर लेगी । इसलिए , खेतों के काम के साथ-साथ पढ़ाई-लिखाई में भी अच्छी थी । 

पैरों की उंगलियों के कारण उसे दूसरों की तरह चलने फिरने पर तकलीफ होती थी । चलते समय कोई भी समझ सकता था कि इसके शरीर में कुछ परेशानी है ।

Short-life story

फिर भी घर के सारे काम कर लेती थी ।  जितने भी जान-पहचान के लोग थे । सभी माधवी को देखकर यही कहते कि फूल सी बच्ची है । भगवान थोड़ी सी कमी कर दी । 

लोगों की इस तरह की चिंता । उसे अच्छी नहीं लगती थी । क्योंकि इससे उसे हमेशा याद दिलाया जाता था कि वह कमजोर है । इसलिए वे लोगों से बातचीत में रूचि नहीं रखती थी । जबकि एकांत में उसे अपनी कमी ख्याल आता ही नहीं था । 


जब माधवी दसवीं कक्षा में गई ।‌ तब से मां-बाप उसे समझाने लगे । । अक्सर उसे कहते थे -

"खुब पढ़ाई कर बेटी, बड़ी होकर मेडम , आफिसर बन जाना । ताकि तुझे अच्छे घर जाने में कोई परेशानी न हो । " 


"क्यों? मेरी कमी मुझे हर बार याद दिलाते हो? मैं ठीक हूं, सभी काम कर लेती हूं। तो चिंता किस बात की? आप लोग जो सोचते हो, वैसा कुछ भी नहीं होगा।" 


वह बहुत निश्चिंतता के साथ कहती थी, जैसे कि वह अपनी क्षमताओं पर पूरा विश्वास रखती हो और दूसरों की चिंताओं को खारिज कर रही हो।


मां-बाप अपने अनुभव से कहते थे तो माधवी आत्म विश्वास से । जिंदगी और दुनियादारी की समझ उसे नहीं थी । मां-बाप इस बात को अच्छी तरह से जानते थे । 


दिन गुजर गए । कब अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी की,  उसे पता ही नहीं चला । चौबीस साल की उम्र हो गई । लेकिन अभी तक उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आया । भगवान जाने !  गांव वाले कमियां बता देते हैं शायद !  इसी आशंका से मां-बाप डरते थे । कुछ रिश्तेदार माधवी के लिए रिश्ता तो लाए लेकिन कमियां अधिक थी । कोई बच्चे वाले लड़के बताते थे तो कोई पूरी तरह से दिव्यांश व्यक्ति , जिसे चलने फिरने की हिम्मत न हो । कुछ दहेज के रूप में मोटी रकम मांगने वाले । ऐसे में कैसे चलेगा  ! क्या होगा ? मां-बाप को यही चिंता सोने नहीं देती थीं । 


धीरे-धीरे माधवी भी समझने लगी । मां-बाप ठीक कहते हैं । रिश्ते देखने जो आते हैं । बहुत कुछ देखते हैं । शरीर के रंग रूप से लेकर धन दौलत को भी  । हम लोग तो गरीब है । दहेज में कुछ दे नहीं सकते हैं ।  फिर उनके पास तो कमी ही कमी है  । 

नौकरी लग जाएगी तो ये सब देखना नहीं पड़ेगा । इसलिए उसने वेकैंसी निकलते ही फार्म भर देते थे । एक दो  बार के प्रयास से मन थकने लगा । 

गांव वाले उसकी कमियों की वजह से सहानुभूति देते । जिससे उसे और दुःख होता था । 

सहेलियां कहतीं - 

"इससे अच्छा है कि मनपसंद लड़के के साथ भागा जाय ।" 

हां, उसकी सहेलियां अक्सर कहा करती थीं । भले ही मजाक में कहें । खासकर निशा जिसकी उम्र छब्बीस की हो गई थी लेकिन रिश्ता नहीं मिला था । प्रेम प्रसंग मामलों में जो पसंद आ जाए वही सुन्दर दिखता है । बुराई ढूंढ़ी नहीं जाती है । लेकिन अरेंज मैरिज में ऐसा नहीं है । पहली नजर से ही अच्छाई-बुराई ढूंढने लगते हैं । एक आदमी नहीं दस-बीस आदमी । दोनों पक्षों में चर्चा होती है । सबकी सहमति के बाद ही रिश्ता जुड़ता है । 


"लव मैरिज में भी नशा उतरने के बाद बुराई दिखाई देने लगती है । कोई सुख-दुख देखने सुनने वाला नहीं होता है । अपनी मर्ज़ी की शादी,,, तो तकलीफ भी अपनी । कोई बीच में नहीं आता है । सहानुभूति दे सकते हैं लेकिन साथ नहीं । अरेंज मैरिज में सभी लोग आ जाते हैं । "

दूसरी सहेली कहती । 


ऐसी चर्चाओं में फैसले नहीं होते हैं, बल्कि जब अच्छाई या बुराई सामने होती है, तो व्यक्ति अपने स्वयं के दृष्टिकोण और अनुभवों के आधार पर निर्णय लेता है। यह व्यक्तिगत दृष्टिकोण और जीवन के अनुभवों पर आधारित होता है, जो व्यक्ति की सोच और निर्णय लेने की प्रक्रिया को आकार देता है।

सभी सहेलियां चुप हो जातीं ।‌


माधवी ने तो जीवन में कभी नहीं सोचा । किसी लड़कों के बारे में । उसने हमेशा अपनी पढ़ाई-लिखाई में ध्यान दिया । जब कोई रिश्ता आने की बात होती तो उसे भी चिंता होने लगती । न जाने कौन आएगा ! कैसा रहेगा ! 

उसकी उंगलियां... अब महसूस हो रहा था । कितनी कमी है, उसमें । 

आखिर एक दिन एक रिश्ता आ ही गया । उसके पड़ोस के ही व्यक्ति ने ढूंढा था । जो कह रहे थे कि - लड़का सांवला है । पढ़ा-लिखा है । उम्र भी ज्यादा नहीं हुई है । धन-दौलत की कोई कमी नहीं है । लेकिन उसकी शादी दूसरी है । पहली शादी टूट चुकी है । क्योंकि लड़की,  लड़के को पसंद नहीं की । मुश्किल से दो-तीन महीने साथ रहे हैं । पहली वाली बहुत सुंदर थी । तलाक - वलाक सब ले चुके हैं ।‌कोई बच्चे - वच्चे की समस्या नहीं है । राज करेगी माधवी । लड़की की सारी कमियां बता दिया हूं ।‌ पैरों की उंगलियां नहीं है , लड़की की । वो लोग मान गए हैं । कभी भी इस बारे में चर्चा नहीं करेंगे ।


लड़के का फोटो दिखाया गया। घरवालों को लड़का पसंद आ गया । उन्होंने लड़की देखने के लिए बुलावा भेज दिया । 

लड़के वाले जब आए तो माधवी को पसंद कर लिए । सभी बातें खुल कर कहीं गई । बिना शर्त के । 

शादी धूमधाम से हुई ।  

ससुराल में पहली ही रात में माधवी को अलग महसूस हुआ । विनोद (उसके पति) खुलकर बातें नहीं की । ऐसा लग रहा है कि उसे कुछ खटक रहा है । शायद ! पहली पत्नी को भूल नहीं पाया है । 


वासनाओं की पूर्ति के समय कुछ दिखाई नहीं देता है, लेकिन बाद में बहुत कुछ दिखाई देने लगते हैं। जब किसी चीज के लिए संघर्ष होता है और उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जाता है, तो चाहत स्पष्ट हो जाती है। जो मिल रहा है उसकी चाह नहीं होती, अब तो कुछ और चाहिए। यह जीवन की एक सच्चाई है, जहां इच्छाएं और आकांक्षाएं कभी समाप्त नहीं होती । जो मिला नहीं है उसके लिए तड़प ज्यादा होती है । 


अपने यौन भावनाओं को रोक नहीं पाता था, यही विनोद की कमी थी । खटक के बाद भी मतलब निकाल लेते थे । 


पति-पत्नी के रूप में शादी की पहली जरूरत पूरी हो गई । जो बंद कमरे की बातें हैं । रिश्ते की सामाजिक मान्यताएं  चार लोगों की उपस्थिति में पूरी कर ली । रिश्तों की जिम्मेदारी अब शुरू होगी । रिश्तों के प्रति उनकी  भावनाएं कुछ और है । इसलिए इस रिश्ते से उदासीन था । 

माधवी सोचती,, आखिर शादी से पहले सभी बातें तो खुलकर हो गई है । जो है,  सो है । फिर ऐसी सोच कैसी है ? 

कुछ लोगों के लिए शादी सामाजिक मान्यता है या समाज में प्रवेश लेने का साधन । भले ही दांपत्य जीवन का दायित्व पता न हो । यही हाल विनोद का था । मन को इस तरह खटकाया कि माधवी को समझ नहीं सका । 

दूसरे का खटास अपने मिठास को कम कर देता है । यही कारण था कि माधवी भी खिन्न रहने लगी । सब-कुछ होता था । लेकिन बातें साधारण थी । तो लाजमी है कि रिश्ता भी साधारण ही होगा । व्यवहार का अपनापन, समर्पण और विश्वास को मजबूत बनाता है । लेकिन यहां नहीं था ,,ऐसा रिश्ता । 



मन का जुड़ाव, या प्रेम , दूरी या घृणा  । किसी से छुपती नहीं है । धीरे-धीरे विनोद के मां-बाप को महसूस होने लगा । उसका लड़का फिर गलती कर रहा है । एक तो मुश्किल से हुई है शादी । उपर से उसका व्यवहार । भगवान जाने । गांव वाले जानेंगे तो यही कहेंगे लड़के में कमी है । चरित्र, शारीरिक या फिर व्यवहारिक रूप में । तभी तो एक से दो या तीन हो रहे हैं। पिता है अनुभव के आधार पर सोचते हैं । 


विनोद कमरे में था । पिताजी घर के आंगन में खाट पर बैठे थे । अपनी पत्नी को खिसियाते हुए कहा "खुद की  कमी देखी नहीं और चला दूसरों की निकालने । फोन का जमाना क्या आया । वहीं से सब सीख रहे हैं ।" 


मां समझ गई क्या उसका पति कहना चाह रहा है । 


"अभी शादी दो-चार दिन हुए हैं और उम्मीद ज्यादा करना ठीक नहीं है । गुजरेंगे दिन, सब समझ जाएंगे । बेटा पढ़ा लिखा है । सम्भाल लेगा । "मां ने कहा । 


"मुझे नहीं लगता है । तब-तक कहीं इस लड़की का मन उचट गया तो । सब कुछ चला जाएगा । 

आवारापन की बातें हैं । जैसे समझते हैं । व्यवहार में दिखता है । न कि बातों की चालाकियों में । कहीं से तो सीखा है रिश्तों की परिभाषा  ! शादी हुई अभी दो-चार दिन हुए हैं । फिर भी उदासीनता । नई-नई शादी होने पर घर से निकलते नहीं है । बाप हूं सब समझ रहा हूं । "



" दुनिया भर का तर्क करने से कोई मतलब नहीं है । समय के साथ जो पास की चीजें हैं उसी से प्रेम हो जाता है । "


"वो सब ठीक है लेकिन कोई-कोई जिंदगी भर पास की चीजों पर नहीं , दूर की चीजों पर ध्यान देते हैं । और मिलता कुछ भी नहीं । किसी किसी को पास की चीजों का खो जाने के बाद महसूस होते हैं । तब-तक बहुत देर हो जाती है ।" 


सास-ससुर की बातें सुनकर माधवी का मन को संतुष्टि मिली । कम-से-कम इस घर में यही लोग अच्छे हैं । बिना कहे समझ गए । उनकी बातों को सुना दोनों ने,  मगर खुशी माधवी को हुई । विनोद की आदत अच्छी नहीं थी । बुरा मानकर चला गया । 


पढ़े-लिखे तो दोनों थे । मगर उस दिन विनोद एक फार्म भर रहा था । पिताजी ने कहा " माधवी भी पढ़ी-लिखी है । उसके लिए भी फार्म ले आते । किस्मत तो है । यदि उसकी अच्छी होगी तो नौकरी मिल जाएगी । "


"बहुत कॉम्पीटिशन है । प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने होंगे । वो कहां निकाल पाएंगी । "


पिता की बातों को अनसुनी कर दी । माधवी का मन टूट गया । उसकी इच्छा थी कि वह भी परीक्षा की तैयारी करें । लेकिन क्या कर सकती है । 

दूसरे दिन उसके ससुर ने अपनी बहू को फार्म लाकर दे दिया । शिक्षक भर्ती का था । 


" तू भी तैयारी कर बेटी । आखिर किस लिए पढ़ाई लिखाई किए हो । अपनी किस्मत आजमाओ ।"


माधवी सकुचाने लगी ।


"उस नालायक की चिंता मत कर ।‌मेरा नाम ले देना । बस तू तैयारी कर । जितना गर्व मुझे उस पर उतना ही तुझपर है । कुछ कहेगा तो मैं हूं । नौकरी लगने की देर है । सब मान जाएंगे । "


ससुर के कहने पर माधवी ने फार्म भर दिया और परीक्षा की तैयारी करने लगी । 

इस बात को विनोद बुरा मान गए । वो माधवी से हर बात पर कहने लगा । 

" परीक्षा देनी है ! क्या कभी तैयारी किए हो ? जो पिता के कहने पर फार्म भर दी । अगर निकाल दोगे तो जिंदगी भर गुलामी करूंगा । मैंने कई बार कोशिश की है । एक से बढ़कर एक परीक्षा दिलाते हैं । पता भी नहीं चलेगा तुम्हारा । "


"बस कोशिश करूंगी । पिताजी ने कह दिया इसलिए । उनका मान-सम्मान का सवाल है । आपको अच्छी तैयारी करनी चाहिए । "


माधवी इतना कहकर चुप हो गई । 

विनोद उस दिन से माधवी के करीब आने लगे । परीक्षा के बहाने चिढ़ाते थे । और अपनी तैयारी करते । दिनभर पढ़ते थे । अपनी पत्नी को भी प्रतियोगिताएं के पुस्तकें देते थे । कहते -

"ले पढ़ । ससुराल में समय मिलता है भला । किसी लड़की को । जो प्रतियोगिता में आ गई । "

परीक्षा के दिन दोनों साथ-साथ गए । घर आ कर कहने लगा । 

"देखी है ना । कितना कठिन था पेपर । घर वाले कहां समझते हैं । क़िस्मत को दोषी ठहरा देंगे । तुम्हारे लिए तो और कठिन हुआ होगा । दो घंटे की पढ़ाई में क्या कर सकती हो ! "

"लेकिन मुझे सरल लगा । "


माधवी के इस तरह से जवाब पाकर विनोद चुप हो गया । 

जब चयनित परीक्षार्थियों की लिस्ट निकाली तो विनोद  काफी परेशान हो गया । उनका नाम कहीं नहीं मिला, जबकि माधवी का नाम टाप टेन में था । उसे लगा उसका भी नाम होगा । ढूंढा मगर नहीं मिला । अपने दोस्तों को कहा,, 

"उसका नाम नहीं दिख रहा है । देखना जरा ।"


उन्हीं दोस्तों में से एक ने कहा -

"मेरा भी चयन नहीं हुआ है लेकिन मेरी पत्नी का नाम है । मैं तो खुश हूं । नौकरी चाहे मेरी हो या उसकी,, एक ही बात है ।"

इतना कहकर वे चले गए  ।‌

विनोद हताश हो गया । उसे रह-रह कर माधवी से कही गई बातें याद आ रहा था । तुम्हारी नौकरी लग जाएगी तो गुलामी करूंगा । 

थका हारा जब घर पहुंचा तो पिता जी ने पूछा - "क्या हुआ ? "

"ठीक है, आपकी बहू की नौकरी लग गई है । "

"और तुम्हारा । "


चुप रहा और अपने कमरे में चला गया । 

माधवी वहीं पर थी । विनोद का जवाब सुनकर खुश थी लेकिन विनोद की थकावट देखकर चुप रही । 

कमरे में जब पहुंची 

"बधाई हो,, तुम्हारी किस्मत अच्छी है । "


उसके इस तरह से कहने पर उदास हो गई ।


"मुझे क्यों प्रतिद्वंद्वी की तरह देखते हो । मैं तो साथ-साथ चलने के लिए आई हूं । मेरी नौकरी भी आपकी है । देखना आपका भी नाम वेटिंग लिस्ट में आ जाएगा । भगवान से प्रार्थना कर रही हूं । आपसे शर्त -वर्त की बात नहीं है । किसी को गुलाम बनाकर मालकिन बनना नहीं चाहती हूं । हम एक हैं । "

"ठीक है । "

"फिर उदासी ,, मुझे देखो । "

डांटते हुए मगर अधिकार पूर्वक और प्यार से  कही । विनोद बिना नजरें मिलाएं उसे गले से लगा लिया । 


माधवी को लगा कि पति-पत्नी के रिश्ते आज एकत्व में समाहित होकर ठंडक दे रहे हैं। यह एक सुंदर और शांतिपूर्ण अनुभव , मिलन है, जहां दोनों जीवन साथी एक-दूसरे के साथ जुड़कर एक नई ऊर्जा और प्रेम का अनुभव कर रहे हैं।


कुछ दिन बाद वेटिंग लिस्ट निकली जिसमें विनोद का नाम था । वह बहुत खुश था । उसने अपनी पत्नी के ही

 स्कूल में पोस्टिंग ली । 

जिसे देखकर माधवी कहती "अब आप मेरे जुनियर बन गए हो । "

"जी, मेडम ।"विनोद सहज स्वीकार करता था ।

राजकपूर राजपूत 

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