Listen Carefully to the Hindi Poem

Listen Carefully to the Hindi Poem 

 ध्यान से सुनो 

सबके सीने पर कान रखकर 

एक डरा हुआ आदमी भी 

गीत गाते हैं 

अपने हितों के 


गुजरों उसके करीब से 

बड़बड़ाने की ध्वनि स्पर्श होगी 


फिल्मों के सुपरस्टार 

पैसा कमा कर बनें है 

जो नायक असफल रहे 

उसे विज्ञापन भी नहीं मिलता 

कितना पछताता होगा 

अपनी असफलताओं से 

जिसे मिला कितनी खुशी के गीत गाते होंगे

जिसे नहीं मिला 

वे पछतावे के 


एक किसान फ़सल को देखकर गाते होंगे 

एक राजनेता छल कर मुस्कुराते होंगे 

सफलता के गीत गाकर 

किसी को ठग कर 


किसी के सीने में दर्द 

किसी के प्रेम 

अरमान सबको गाने के लिए प्रेरित किया है 

सिर्फ़ सुनो 

उसके सीने में कान रखकर !!!!

Listen Carefully to the Hindi Poem 

उसने बातें बहुत की 

देश दुनिया की 

परिवर्तन की 

उसकी बातों में विद्रोही स्वर गूंज रही थी 

वर्तमान स्थिति के लिए 

उसे उठाने कोई नहीं आया 

तकल्लुफ इस बात की है 

प्राचीन पुराणों में 

उसे शोषण किया 

जिसे उसने आज जाना 

जाना तो 

वर्तमान में जो पुराणों को थामे थे 

उससे विरोध किया 

नफ़रत की 

उसमें सुधार के लिए नहीं 

नष्ट करने के लिए 

सुधार का ये स्वरूप 

वैमनस्य पैदा किया 

दो समाजों में 

जिसकी पटान नहीं है 

वर्तमान जागरूकता में !!!!


कितना गतिरोध है 

हमारी चाहत में 

मुझे पहाड़ पसंद है 

तुम्हें नदी 

नदी का बहाव 

निरंतर आगे बढ़ना 

उसकी मचलती हुई धार 

गांव, शहर का प्यार 

जबकि पहाड़ 

रोककर खड़ा रहता है 

बादलों को 

और नदी के अस्तित्व के लिए 

बादलों से निचोड़ लाता है 

निर्मल पानी 


पहाड़ों के सीने पर ही 

बहती है नदी 

अल्हड़ होकर

गति लेकर 

मैदानों की ओर 


जबकि नदी और पहाड़ 

एक दूसरे के पूरक हैं 

लेकिन हमारी नजरिए और चाहत 

अलग-अलग क्यों ? !!!


कुछ लोगों को लग रहा हैं 

'आपरेशन सिंदूर' गलत नामकरण है 

पितृसत्तात्मक का प्रतीक है 

स्त्रीत्व पर आघात है 

कुछ लोगों की बात है 


जिसने स्थापित किया है सदैव 

पुरुष और स्त्री को 

एक प्रतिद्वंदी के समान 

कपड़े और चाल ढाल से

आगे करने का प्रयास पुरुषों से 

समानता का दर्जा न देकर 

विद्रोही बनाया

पुरुषों के 

अनावश्यक राय देकर 

कभी बराबरी की नजरों से नहीं देखा 

स्त्री और पुरुष को 

कितने अलगाववादी है !!!!


तर्क में फर्क होता है 

शिक्षित के बीच भी अनपढ़ होता है 

वही रूटीन में बढते हैं 

जिसे शिक्षित लोग गढ़ते हैं 

कम पढ़े लिखे लोगों पर 

शहर गाँव पर 

चंद कपड़े, चंद रहन सहन से ऊँचे हुए क्या 

चालाकियों से भरी बातें, सभ्य हुए क्या 

एक अनपढ़ बोल न पाया 

शिक्षित व्यक्ति अनपढ से सम्मान पाया 

शिक्षित व्यक्ति अनपढ़ को समझ पाया क्या 

जितने रिश्ते टिकें हैं 

मजबूती ढंग से अनपढ़ लोगों में दिखे हैं 

अज्ञात रास्ता हर मोड पर 

सतत जागरूक हुए क्या ?


कब तुम्हें चाहा मैंने इस तरह
मिल जाओ तुम मुझे किसी तरह
मैंने तुम्हें देखना चाहा और देखकर महसूस करना

जब-जब तुमने सूनी मेरी बातों को
तुम्हारे आश्वस्त चेहरे बताया कि
तुम निश्चिन्त हो मेरे प्रेम में
तुम्हारी उम्मीद की भावनाएं
स्वतंत्र सोच की उड़ान भरने लगी

तुम्हारे चेहरे पर उमड़ती खुशियां
अरमानों के पंख लगाकर उड़ गए
और मैं इंतजार करता रह गया
प्रेम में स्वतंत्रता होनी है
तुम आओगे लौटकर
जरूरी समझकर
मेरे प्रेम को
इसी आशा से प्रेम किया था तुमको !!!!


जब छुटना था प्रेम को 

तो संदेह के घेरे में नहीं था 

आश्वस्त हो गया था दिन के उजाले जैसे 

सब-कुछ साफ-साफ 

देख रहे थे 

किसी वकील जैसे 

गुनाह क्या है ये पता नहीं 

लेकिन जो सुना था 

जो समझा था 

सच साबित करने के लिए 

पैरवी करने लगे 

गुनाह एक दूसरे पर था 

बस साबित करना था 

जिरह करके 

जो बहसबाजी में जवाब नहीं दे पाया 

वो गुनहगार 

अंततः दलील नहीं दे पाया 

प्रेम 

इसलिए सजा हुआ 

उम्रकैद की 

प्रेम को । ।।


जब भी मैंने उससे बातें की
उसने रखी पहले अपनी बात
मुझे सुना बाद में
सुनाया बहुत अपना
ये मानकर चलता है कि
उसकी उपस्थिति जायज़ है
र महत्वपूर्ण
बाकी प्राथमिकता के आधार पर
दूसरा, तीसरी ,चौथा
इसलिए उसने अपना मुंह पहले खोला
और जब भी बोला
एक सलाह निकला
चंद तर्कों से निर्णायक फैसला
मेरी बातों का

फिर सुनाने लगा अपना
महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह
आजकल बोलने वाले का स्थान है !!!

अपने आरोप पर
उसने आरोप लगाया दूसरे पर
बच गया इस तरह
लोगों का ध्यान बटा जिस तरह
सारे आरोपों से बरी हुए इस तरह !!!!

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