Atikraman - Kavita Hindi आजकल अतिक्रमण स्वाभाविक नैतिकता बन गई है । चाहें जमीन की हो या फिर विचारों की । रिश्वत देना और लेना बुराई है लेकिन जिसे मौक़ा नहीं मिला है , उसके लिए । जिसे मौक़ा मिला है उसके लिए कठिन है । बच पाना । इसे स्वाभाविक रूप से नाम परिवर्तन कर देते हैं । व्यवहारिक रूप में चाय-पानी के खर्चे का नाम दिया है । नहीं देने पर संबंध स्थाई नहीं रह सकता है । काम लेट लतीफ़ हो सकती है । संख्या अधिक है मौकापरस्ती करने वाले लोगों का, इसलिए आजकल अतिक्रमण है । हर जगह । न्याय, सच मौकापरस्ती के हिसाब से प्रस्तुत है । ज्यादा की उम्मीद बेवकूफी है । भीड़ के हिस्से में शामिल है सब लोग । सच अकेले में कुंठित ।
Atikraman - Kavita Hindi
अतिक्रमण, जमीन और विचारों पर
अतिक्रमण वहां भी था
जहां नहीं होना चाहिए
किसी की सुविधा में
असुविधा बनकर
जैसे सड़क छोड़कर
पगडंडी पर कब्जा कर लिया था
मैं उसे भुलना चाहा
लेकिन याद आया
पगडंडी उसकी थी
जिस पर उसका कब्जा था
सड़क के दोनों किनारे
उनके होने से
मेरा सफ़र चलता रहा
अंतहीन !!!!
मतलब पे माहिर
मौके - मौके पे जाहिर
अभी उसके हैं
हां मतलब उसके हैं
निकलेंगे तो
हम ग़ैर उसके हैं !!!!
शिकायत उसकी है
और वफ़ा हमारी है
हम आदत से मजबुर होके हारे
एक प्रेम के सहारे
वो समझते हैं
जीत हमारी है
वो सीखें है रिश्तेदारों से
बाज़ी सियासी उसकी है
मतलब से जिस दिन टकराएंगे
हारी मोहब्बत हमारी है
लेकिन शिकायत उसकी है !!!!
अतिक्रमण हो चुका था
अब उसके सिवा
सोचने के लिए कुछ बचा नहीं था
कई लोग लूट लिए
भावनाएं टूट चुकी
मैं अस्तित्वहीन
मेरे पास अतिक्रमण के लिए
जमीं नहीं बची थी !!!!
आजकल अतिक्रमण के लिए
बंदूक, गोला बारूद चाहिए
आत्मघाती हमलावर बन जाना चाहिए
क्योंकि प्रेम में आदमी स्वयं हारते हैं
और बंदूक से
विरोधी, मतलबी दुनिया
जिसे जीना है
मतलब के लिए
वो डर जाते हैं
बंदूक के आगे !!!!
आजकल अतिक्रमण
सीधे-सादे बनकर ज्यादा करते हैं
चालाक लोगों से
बचकर निकला करते हैं
यदि चालाक लोगों का समूह
गांव का पंच बन जाएं तो
अतिक्रमण के हिस्से
अपने-अपने लिए बांट लेते हैं !!!!
यहां कोई सीधा नहीं है
जैसे दुनिया को कहती हैं
मतलबी
ये शिकायत तब-तक
जबतक उसे मतलब निकालने का मौका नहीं मिला है !!!!
उसने सीधे इंकार नहीं किया
सिर्फ बदलने की
कोशिश की
उसे लगा
सीधी लड़ाई
स्थाई दुश्मनी देगी
तर्क ले आया
मोटरसाइकिल वालों की गलतियां होती है
पैदल चलने वालों की नहीं
इस तरह
एक समझदारी स्थापित हो गई
हमारी !!!!
अभी वो प्रेम में था
लगा जैसे
दिल वाला था
और उसने समझदारी की
बातें की
जैसे भीषण गर्मी में
पेड़ लगाने की
बातें की
जैसे गर्मी कम हुई
बिजली के पंखों से संतुष्ट हुआ
पेड़ लगाने की जरूरत कम हुई
इस तरह उसकी
मोहब्बत की बातें कम हुई
जैसे जैसे बदलती हैं
ॠतुएं !!!
गमले में पौधे रोपित करने वाले
वृक्षारोपण का अभियान चला रहा है
तथाकथित बुद्धिजीवी
जो सोशल मीडिया पर बैठा है
ऐसा ऐंठा है
गमले के पौधे के साथ
सेल्फी पोज लेकर
ज्ञान का अलख जगा रहा है !!!
एक आदमी की कीमत
लोकतंत्र में नहीं है
जब तक बहुमत का हिस्सा न हो
सूनी कम जाती है
जैसे खबरों में मसाला ज्यादा न हो
जब भीड़ का हिस्सा
आवाज़ देती है
एकल आदमी अपना रास्ता
बदल देता है
जानता है
भीड़ की ताकत
उन्मादी, हिसंक
जब उसे ग़लत को सही साबित करना होता है
इसलिए भीड़ की कीमत होती है !!!
आतंकवादियों ने
खुद को कवर कर लिया है
दोगलेपन से
बदल जाती है सच्चाई
रिश्तों के अपनेपन से !!!!
भीड़ के बाहर
अकेले में
कुत्ता हमला नहीं कर सकता
शिकार नहीं कर सकता
जब भीड़ में शामिल हो जाते हैं
कुत्ते हमलावर हो जाते हैं !!!!!
उन्होंने उस जगह पर अतिक्रमण किया
जहां लोग आते जाते हैं
सोशल मीडिया पर कब्जा किया
साहित्य और सियासत पर हावी रहा
विचार उनके
जहां से प्रेषित कर
लोगों को
परिचय करा सकें
तथाकथित बुद्धि , वैज्ञानिक दृष्टिकोण
तर्कशील होने का ढोंग
वे तब ही सफल हुए
जब हमने सुनें उसको
और विचार करने लगे
उनके अनुसार
तब एक विभत्स हंसी फूटी
किसी राक्षस के अनुसार
अपने एजेंडे को लागू होते देख !!!!!
न जल बचा न जंगल
न पक्षी बचें न जानवर
अपनी सुविधा में मशगूल आदमी
अब एक दूसरे पे अतिक्रमण कर रहा है आदमी !!!!
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Atikraman - Kavita Hindi अतिक्रमण, जमीन और विचारों पर |
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