Good-Thoughts-On-social-Issues-of-Today सामाजिक मुद्दे

Thoughts-On-social-Issues-of-Today बदलाव यूं ही अक्सर किसी महान आत्मा के विचारों से आता है । जो स्थायित्व प्रदान करता है । जो समय-समय पर जीवन की राहों पर काम आता है । लेकिन आजकल के विचार चोरी की है । जो केवल भ्रमित कर सकते हैं लेकिन स्थायित्व नहीं दें सकता है । खासकर उन तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा परोसा गया विचार जो किसी एजेंडे को स्थापित करने के लिए होते हैं । खासकर के शिक्षित विचार जो अनुमान पर आधारित है । अनुभव पर नहीं है । 

सियासी बुद्धि, , मतलब की सिद्धि । सहजता और सरलता से प्राप्त नहीं किया जा सकता है । जब तक झूठ बोला न जाए, लोगों को बहलाया नहीं जा सकता है । सफलता,,, जिसे सत्य से प्राप्त नहीं किया जा सकता है । झूठ की सफलता देख सहजता और सरलता सबने छोड़ दिए हैं । 

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कोई भी बदलाव 

यूं ही नहीं आता है

एकाएक

जिसको समझा जा सके

विचार 

धीरे-धीरे परिवर्तित होते हैं

दबे पांव

यदि किसी पेड़ को

सीधे काट दिया जाता है

तो उसका खालीपन

सबको महसूस हो जाता है 

इसलिए रोपित किए जाते हैं

नए पेड़

कुछ दूरी पर

जिसके तैयार होते ही

पुराने पेड़ काट दिए जाते हैं 

ताकि किसी को

महसूस न हो

उस जगह का खालीपन !!


पेड़ के नीचे पेड़

नहीं उगते हैं

अगर उगते हैं

तो बड़े पेड़

उसे बढ़ने नहीं देते हैं

उसकी छाया का हिस्सा

उनके है

जहां बेवजह उग आए हैं

छोटे पेड़ !!!!

बदलाव यूं नहीं होता है

किसी के विचारों में

वो तो मतलब का आधार है

जहां दिखें

वहीं सीखें

एक झूठी मुस्कान

जिसे समय-समय पर

प्रदर्शित की जाती है

मतलब तक

फिर उतार दिया जाता है

मतलब सधने के बाद

तुम्हें पता है

लोग शिक्षित हो गए हैं

इस अभिनय में

आज का पढ़ाई-लिखाई का स्तर

इसी को पाना है!!!

फासले अभी और बढ़ेंगे

रिश्तों के

वो संवाद की कड़ी टूट चुकी है

जो बरसों पहले थी

रिश्तों के बीच में

जिससे जुड़ती थे

रिश्ते

जीवन की सुन्दरता देखो

इधर उधर मत देखो

चांद सितारों की रौशनी है

अंधेरी रात मत देखो 

उनके शब्दों के अर्थ में जाओ

किसी का मुंह मत देखो 

विचार उनका मरा हुआ है

दिखावटीपन मत देखो

वो जब भी आया संशय लाया 

भाषण उनका मत देखो

तुम्हें जीना है तो चलना है

सफ़र के कांटे मत देखो

मैं तो चला गीत गाता हुआ

कौन आता है कौन जाता है मत देखो !!

व्यक्तिवादी होना है 

सामाजिक रिश्तों को खोना है

मोल नहीं अब त्याग का

अपने मतलब पे जीना मरना है

विचार नया नहीं है

जंगली जीवन जीना है

उच्छृंखलता आजादी की

जश्न मनाना है 

नग्गा नाचने लगे लोग

अब क्या बचाना है

कोयल की आवाजें गुम हो गई

कौवे का राग अलापना है !!!

तुम्हें बुराई खुद में देखनी चाहिए

कभी समझाओं मत दूसरों को 

अगर समझाते हो तो

तुम सामाजिक जीवन में उतर जाते हो 

जो तुम्हारी बुराई बन जाएंगी

तुम्हें तो व्यक्तिगत लाभ लेना है

अपने लिए सोचना है

पैसा,  पद, प्रतिष्ठा

जहां दिखा

वहीं पर लाभ लेकर भागना है

जबकि 

तुम तो कट्टर व्यक्तिवादी हो

स्वार्थी, मतलबी हो

सामाजिक बुराई देखना

तुम्हें शोभा नहीं देता है !!!


आलोचनात्मक दृष्टि से हर कोई महान है

लेकिन कर्म से उसकी क्या पहचान है

मायने रखती है !!!

इन्हें भी पढ़ें 👉 अधूरा प्रेम 

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