Pakhandi sant aur insaan Kavita Hindi

आजकल के संत ज्ञान का मार्ग निर्माण कम करते हैं ।  Pakhandi sant aur insaan Kavita Hindi बल्कि हिन्दू धर्म की बुराई ज्यादा करते हैं । ये उसकी सहुलियत है । जिससे खुद को संत रूप में स्थापित कर लेते हैं ।  संतों को भी कम्यूनिस्ट बनने की चाह दिखाई देती हैं । ज्ञान का दर्शन हिंदू धर्म की लकीरें काटकर बनाया जाता है । मगर ऐसे तथाकथित संतों का प्रभाव मुर्ख व्यक्तियों पर जल्दी पड़ता है । उनके अंधश्रद्धा, ऐसे दोगले, चरित्रहीन, को भगवान बनाने में देर नहीं लगती है । जिससे उसे पैसे और शोहरतें दोनों मिलते हैं । पढ़िए कविता हिन्दी में 👇👇

Pakhandi sant aur insaan Kavita Hindi 


कुछ संत का चोला ओढ़े
अपने मतलब पर बोले

हम तथाकथित धर्म सुधारक हैं 
ज्ञान के नए पुजारक हैं

माना तुझमें ज्ञान होगा
जिसपर तुझे अभिमान होगा

लेकिन तू समझदार नहीं है
दूसरों के लकीर काटने हम तैयार नहीं है

जिसका तुझे फायदा मिलता है
इसलिए हम पर अनाप-शनाप लिखता है 

सहिष्णु, सजग, धर्म पर ज्ञान देते
बंदुक के आगे कुछ नहीं बोलते

ऐसे दोगले कब के संत हुए
चार चेले बनाकर पंथ हुए

उससे पूछो क्या सब पर मुंह खोलता है
मौत देखकर क्यों मुंह मोड़ता है

या फंडिंग लेकर देश धर्म को बदनाम करें
बगुला भगत बनकर अपना नाम करें

ऐसे ढोंगी संतों का उपचार करें
ज्ञान वीरों की सेना तैयार करें

ज़मीं पे पटक दो ऐसे मक्कारों को
गोली मारो ऐसे गद्दारों को

जो पल में रंग बदलते हैं 
चरित्र नहीं जिनके अपने हैं 

दूसरों पर जो उंगली उठाते हैं
अपना चरित्र जग से छुपाते हैं

काया माया जिसको भाया
विदेशी फंडिंग से एजेंडा चलाया

साथ रहकर साथ नहीं
हाथ देकर हाथ नहीं

दोहरे चरित्र में जीने वाले
खुद को बुद्धिजीवी कहने वाले

खुद के चरित्र को तो नापों
ईश्वर के नाम से तो कापों

माना तू ईश्वर को मानता नहीं
अरे ! तू खुद को भी जानता नहीं

भोगवादी है जीवन तेरा
जंगली जीना है लक्ष्य तेरा

तू क्या सबको समझा पाएगा
जिससे पैसा मिलेगा उसका गाएगा

तू क्या जाने देशभक्ति
तू क्या जाने आस्था की शक्ति

तेरा नक़ाब उठाना है
क्या चरित्र है सबको बताना है

हम धर्म के नाम पर लड़ते नहीं
गोला बारूद, बंदूकें चलाते नहीं

जीओ और जीने दो हमारी सिध्दांत है
फिर भी हमीं पे आघात है

वाह !, रे ज्ञानचंद क्या बात है
तेरे ज्ञान पर दो चार लात है  !!!!

तुम आ जाते हो

बरसाती मेंढक जैसे
हिंदूओं के त्यौहारों पे
ज्ञान देने
निरयाते हो
चीखते, चिल्लाते हो
तथाकथित बुद्धिजीवी !!!

टमाटर के भूखें
चंद्रयान में पहुंच कर
टमाटर लूटे
मंहगाई उसका मुद्दा है
कविता लिखकर वाह वाह लूटे !!!

कितना साम्प्रदायिक है आदमी
किसी खास पर कविता,लेख लिखता है आदमी
अपनी बिरादरी की अच्छाई
दूसरों की बुराई लिखता है आदमी
मणिपुर की हिंसक घटनाएं
राजनेताओं से प्रेरित लिखता है आदमी !!!


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