so-called-intellectual-and-literary-poetry-seven-so-called-intellectual-and-literary-poetry-literature-life तथाकथित बुद्धिजीवी होना अलग बात है । कुछ भी कह देना दूसरों के बारे में अलग बात है । मगर उन बातों का स्वयं अमल करना बहुत कठिन है । तथाकथित बुद्धिजीवी अक्सर दोगले किस्म के होते हैं । जो दूसरों पर आरोप और ज्ञान देने से बाज नहीं आते हैं । जिसका पालन स्वयं नहीं करते हैं । पलटू मारने की आदत उसे दोगला आदमी सिद्ध करने के लिए काफी है ।पढिए इस पर कविता 👇👇
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तथाकथित बुद्धिजीवी और साहित्यकार
लिखना है उसे सच मगर
आधा बच जाएगा
आजकल ऐसे-ऐसे साहित्यकार है
जहां डर लगेगा
वहां से भाग जाएगा
तथाकथित बुद्धिजीवियों की यहीं आस है
गला काटने वालों पर
चुप रह जाएगा
एक ऍल्गोरिथम है गूगल की
माइंड सेट पहले से समझ जाएगा
सच का दावा उसका खोखला है
आजकल कैसे वो साहित्यकार बन जाएगा !!!
तुम परोस दो
कुछ भी बातें
और लोग मान लें
ये बरसों की बात है
जब तुम छूप जाते
अपनी चालाकियों से
लेकिन तुमने अपने दोगलेपन का
इतना उदाहरण पेश किए
लोग तुझे तथाकथित कहने लगे !!!
वो आया
किसी संत
किसी भगवान से बड़े ज्ञानी बनकर
जिसने तर्क दिए
नए विचार दिए
सभी मेरे पुराने ख्यालों को तोड़कर
मुझे अकेला छोड़कर
चला गया
मानों मुझे छला गया
तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा !!!!
मैं जब भी
तुम्हारा साहित्य पढ़ता हूं
तुम तथाकथित बुद्धिजीवी वैज्ञानिक बन जाते हो
तब मुझे लगता है
तुम व्यक्तिवादी न हो कर
सर्वे हित में रचनाएं मिलेंगी
गरीब को गरीब कहोगे
लेकिन ऐसा नहीं है
तुमने अपने वर्ग चुन लिया है
तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग बनकर !!!
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