जीवन की नदी Nadi/River on poem

Nadi/River on poem 

जीवन की नदी

सुख-दुख दो छोर

बहती है नदी

कभी इस ओर

कभी उस ओर

कभी मचलती

कभी उछलती

कभी पत्थरों से

टकरा जाती

गति जीवन कभी झूक

टेम है आगे

कभी रूक

भर जा लबालब

छलक जाएंगी तू

गति जीवन का नाम है

सागर से मिलन

विश्राम है

तब तक चलते जाना

और अंतिम लक्ष्य को पाना है !!!

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