जिसे हम नहीं चाहते हैं ।( chahat aur Nafrat ghazal ) जो हमें नहीं भाते हैं । उसकी अधिकांश बातें हमें अच्छी नहीं लगती हैं । उनके बातों को काटते रहते हैं । ताकि असहमति जताई जा सके । विरोध के स्वरूप में । हमारी पसंद/नापसंद उसके सामने प्रगट होते हैं । चाहे अच्छी बातें क्यों न हो । जबकि ठीक इसके विपरित चाहत के साथ उल्टा होता है । जिसको हम पसंद करते हैं । हर उसकी हर बुरी चीजों को पर्दा या फिर सुधारने की कोशिश करते हैं । चाहत और नफ़रत में यही अंतर है । पढ़िए इस पर गजल 👇👇
chahat aur Nafrat ghazal
तेरी चाहत नफ़रत में दिखती है
शायद तुने मोहब्बत नहीं सीखी है
तेरी बातों में अजीब दोगलापन है
तुझे अपनी गलतियॉं नहीं दिखी है
ये आ-आकर तेरा हमें समझना
कभी उंगलियॉं खुद पर नहीं उठी है
तू इतने लायक़ नहीं है ये जान लें
तेरी हर बातों में सियासत ही दिखी है
अपनी चाहत में जो अंधी है
चाहत के सिवा सबमें नफ़रत दिखी है
वो सुधारते हैं अपनो की गलतियां
माफ़ नहीं करते गैरों पे अगर दिखी है
तुम जो अच्छी बातें बताते हो ईमान की
खुद पालन करने की नीयत नहीं दिखी है !!
सियासत में माहिर
यदि पंथ हो जाय
राजनितिक अखाड़ा
भगवान का घर हो जाय
वो जब भी मुंह खोलेंगे इल्म के साथ
मोहब्बत भी नफ़रत हो जाय
तुम जिसे मानते हो फरिश्ते
कहीं उसके नेक इरादे एजेंडा न हो जाय
उसने संविधान की दुहाई दी बहुत
जिसकी बातों पे न्याय खो जाय
वो शोषित होगा बरसों का
उसके अपने के सिवा अपराधी हो जाय !!!
बहुत शोषित पीड़ित खुद को दिखाना
कहां से सीखा है ऐसा निशाना
न्याय तेरे लिए होगा तो मेरे लिए भी होगा
तुम कहो तो ठीक हम कहें तो दकियानूसी बताना
तेरा दोगलापन है या चालाकी
ये चाल ज़रा हमें भी सिखाना !!!
तेरी चाहत नफ़रत पर दिखती है
तुम जब कहते हो
किसी के बारे में
कमियां निकालते हो
वहीं पर नफ़रत दिख जाती है
तुम्हारी
और अपनी चाहत को
सही साबित करने की कोशिश
करते हो
चाहत और नफ़रत में
उलझीं है
तुम्हारा नजरिया !!!!
तुमने एक हिस्से को
सत्य के रूप में
दिखाया सबको
बताया सबको
यही सच है
जबकि दूसरे हिस्से में
झूठ भरा था
ज्ञान की बातें नहीं होगी
तुम्हें पसंद है
वहीं बातें सुनते हो !!!!
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---राजकपूर राजपूत''राज''
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