mirror and face poem
आईना पुछता है
तेरे चेहरे की रौनक
कौन ले गया
कौन दे गया
जो खड़े होकर
परखते हो
उसकी औकात
अपनी हैसियत !!
mirror and face poem
आईने के सामने खड़ा हुआ शख्स
अपना चेहरा नहीं देखता है
वो देखता है
अपना अहम
दूसरों को कम
आंकता है !!
तुम्हें याद रखना चाहिए
आईना
चेहरा उल्टा दिखाता है
जब सामने खड़े हो गए
अपना कम दूसरों का ज्यादा दिखाता है
वो करता है दूसरों की हैसियत पर सवाल
और खुद ही दे देता है जवाब
होकर संतुष्ट
अपने अहम को पुष्ट
उल्टा आईना देखता है !!!
अपना ही चेहरा देख नहीं पाया आईने में
वो तो अपना आईना किसी और को मानता है !!
कुछ न सही लेकिन आईना रख
गैरों का नहीं मगर अपना रख
हैसियत सबकी अलग-अलग
टूटे हुए आईने में क्या है एक साफ़ सुथरा रख !!!
तुम्हें भी दिख जाएगा आईने में
उभरा हुआ दाग़
मिटा सको तो मिटा लो यूं न भाग
चढ़ा कर रंग रोदन खुबसूरती बढ़ाना ठीक नहीं
आईना जानता है तेरे चेहरे का दाग़ !!!
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1 टिप्पणियाँ
Sundar
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