मेरी कविताएं

मेरी कविताएं
तुम्हारे स्पर्श से बाहर है
क्योंकि तुम्हारी समझ
मेरी कविताओं के
स्पर्श से बाहर है
तुम्हारी दिमागी हसरत
तुम्हारा स्थूल जरूरत
भौतिकताओं को छूती है
आधुनिकताओं में जीती है
जहां मेरी कविताएं
मुरझा जाती है
तुम्हारे स्पर्श से
जैसे फूलों की सुन्दरता
तुम्हें बरबस खिंचती है
और तुम तोड़ देते हो
फूलों को..
हाथों की सजावट के लिए
गले की हार के लिए
जो चंद पलों में
मुरझा जाती है
अपनी जड़ से
अलग हो कर
फूल और
मेरी कविताएं ..
तुम्हारे स्पर्श से !!!!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''

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