मनवा बेपरवाह Maan ki chanchalta Kavita

मन बहुत चंचल है । Maan ki chanchalta Kavita जिसे काबू में करना बहुत कठिन है । जैसे हवा को बांधना, जैसे आकाश को नापना । एक कल्पना में कहीं के कहीं पहुंच जाना होता है । कभी अनुमान लगाना, कभी ज्ञान बताना । लेकिन स्थिर नहीं हो पाता है । यदि मन को जीत लिया तो संपूर्ण जगत जीत लिया , समझों । पढ़िए इस पर कविता 👇

Maan ki chanchalta Kavita 

मनवा बेपरवाह
ले चल मुझे
जहाॅ॑ मिल जाए वो मुझे
ना भटक दर-बदर
अपनी बेचैनी में
ना तरसाओ
इस छोटी सी जिन्दगी में
जहाॅ॑ सुकून मिले
मेरा हर दर्द सिले
विनती है तुझे
ले चल मुझे
मनवा बेपरवाह !!!

मनवा बेपरवाह
भटक जाता है
लोगों की चालाकियों को 
समझ नहीं पाता है
फंस गए हैं भावनाओं में
दिल से लगा बैठता है
जहां मिले कुछ अच्छी बातें
दिल कभी इधर कभी उधर हो जाता है
सुबह-सुबह तेरा नाम जो आया
दिनभर राग बना बैठता है
तेरे नाम की माला जपें
ख्याल बना बैठता है
जहां नहीं जाना चाहिए
वहां चला जाता है !!

ध्यान लगाया तो जाना
मेरे मन का कभी इधर कभी उधर हो जाना
जहां मेरी दिल्लगी थी
रोकने की कोशिश की मैंने
लेकिन पहुंच जाना
मनवा बेपरवाह होते जाना !!! 

कुछ तर्क
अनुमान होता है
जिसे जोड़ दिया जाता है
किसी बात, घटना पर
ताकि अनुमान को सबुत मिल जाए !!!

मनवा बेपरवाह
यदि हो जाए
तो असहज महसूस न करे
केवल उसकी ध्यान में
शामिल न हो
छूट जाता है विचार
टूट जाता है ख्याल
यदि मन के बहकावे में
तुम न आए हो तो !!!!


मन तो खींच लें जाता है
कहीं भी
अच्छा होगा
तू शामिल न हो !!!!
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Maan ki chanchalta Kavita


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