मंजिल मिले मगर दिल को सुकून नहीं

मंजिल मिले मगर..….


मंजिल मिलें मगर दिल को सुकून नहीं
ठहरा कुछ देर मगर दिल को सुकून नहीं

अब चाहे हम किसे तू ही बता मेरे यार
तेरे बग़ैर अब मेरे दिल को सुकून नहीं

ये मंजिल क्या है ये मुकाम क्या है "राज"
जन्नत है जहाॅ॑ वहाॅ॑ दिल को सुकून नहीं

ठहरा तेरी राहों पे बहुत देर तक मगर
तू आई नहीं मेरे पास दिल को सुकून नहीं

मैं अपने ही चाहतों में उलझता गया
ख्वाबों में दिल लगता है हकीकत में सुकून नहीं 

मैं कब तक अपना ही बोझ उठाऊंगा यारों
ले के बोझ भटकता हूं मेरे दिल को सुकून नहीं 

---राजकपूर राजपूत''
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