Some Traitor Poem in Hindi
मैंने बचपन में पढ़ा था
देश भक्ति की किताब
जिनके देशभक्ति थे बेहिसाब
उन्हीं के विरोध में
खड़े थे कुछ मक्कार
और कुछ गद्दार
खून खौल जाता था
दिल दहल जाता था
पढ़ कर उनकी मक्कारी
जिनके मर गए थे
स्वाभिमान और खुद्दारी
लेकिन
आज भी इस देश में
ना जाने कितने भेष में
घुम रहे हैं वहीं गद्दार
जो बन गए हैं सिपहसालार
जिसने अपनी बुद्धिमत्ता से
छुपाए है चेहरे अपनी भीड़ से
जिन्हें परिभाषित कर पाना
मुश्किल है...!!!!
Some Traitor Poem in Hindi
लिखा था
वो गद्दार भी
देश भक्ति अच्छी होती है
लेकिन मुफ्त के खाने के चक्कर में
देश से गद्दारी कर रहा है !!!!
अभी तो जीना नहीं सीखा है
दूसरों के बताए अनुसार
नजरिया बनाते हैं
वो क्या न्याय करेगा ?
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