बंटे हुए हैं लोग Divided People kavita

Divided People kavita 
बंटे हुए हैं लोग
बंटे हुए विद्वान
बंटे हुए हैं सियासत दान
कुछ विचारों में
जिसपर कभी
एकमत नहीं होगा
बेशक असहमत होगा
उसके तर्क देख
जिसमें उसकी पहचान देख
जिम्मेदारी नहीं
सच नहीं
स्वार्थ की पराकाष्ठा
जिसमें गूथा आटा
चाहें जनता खाएं चाटा
उसे क्या है भला
अपनी हित ले चला
लोगों को बरगलाना
स्वयं को महान बताना
यही विद्वता है
जिसमें बुद्धिमत्ता है
उसकी कदम चूमती
अद्भुत सफलता है !!

Divided People kavita


सहमत लोगों ने सोचना छोड़ दिया
या तो डर गए
या मर गए
तलवार की डर से
धर्म बदल गए !!!


असहमत लोगों ने
सोचना शुरू किया
जैसे जीना शुरू किया
सहमति
तलवार के बल पर भी न दी
वो जानता था
भय का मार्ग
अस्तित्व खत्म कर देते हैं !!!


---राजकपूर राजपूत''राज''







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