मेरा ग़म ही कुछ इस कदर था

मेरा ग़म ही कुछ इस कदर था
मेरे सीने में उसके लिए प्यार था

दुनिया किसी और में उलझी रही
मेरी मंजिल तू है मुझे एतबार था

मैं गया था वहाॅ॑ जहाॅ॑ मिले थे कभी
तुम नहीं आए बेशक दिन इतवार था

आज भी दिल धड़क जाता है उसे देखकर
वो लौट कर आएंगे मेरा भरोसा बरकरार था

तुम मान जाते तो अच्छा था
लेकिन तेरे लफ्जों में तकरार था

---राजकपूर राजपूत
मेरा ग़म ही कुछ इस कदर था










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