बारिश की बूंदें

Barish ki kuchh bunden 


बारिश की कुछ बूंदें ही
जमीं पर गिरे थे
पेड़ों के पत्तों में
घास की फुनगी में
जो धरती की सतह को
छु नहीं पाए थे
उसके दर्द को
समझ नहीं पाए थे
जिसे सूरज ने
सोख लिया था
अपने ताप से
इतनी जल्दी
जिसके लिए तरसती थी 
ज़मीं
बरसों से 
और ताकते ही रह गए
अपनी ही नमी से ! 
---राजकपूर राजपूत''
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