Poetry according to Political Convenience
आपकी सुविधानुसार बातों से
तुम्हारी औकातों से
लोग डर जाते हैं
ना नैतिकता और ज़िम्मेदारी है
तेरी सफलता की कैसी लाचारी है
जो कसम खाएं हो ईमानदारी की
आज जो बने बैठे हो व्यापारी है !!
कसम जोर से करना
इतने ज़ोर से
बाकी दब जाए
और तेरे झूठे वादों पे
सबको भरोसा हो जाय !!
Poetry according to Political Convenience
ले आना तुम उसे
जिसपे सबको भरोसा होता है
तुमने तो विश्वास खो दिए हो !!!
जब बात न बने
तो उन लोगो को सामने रखकर
विश्वास दिलाने की कोशिश करना
जिसकी असलियत
ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं
वर्ना तुम्हारे लिए जगह भी नहीं है
विश्वास करने के लिए !!!
नफ़रत में हो तो
प्रेम दिखाई नहीं देता
प्रेम में हो तो नफ़रत
अब तुम्हें सोचना चाहिए
तुम्हें क्या चाहिए???
तुम्हें क्या पसंद है???
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- राजकपूर राजपूत राज
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