मारे हो खुद को
मारे हो खुद को
अंदर ही अंदर
अपनी संवेदनाओं को
ताकि दुनिया के भीड़ में
शामिल हो सको
तुम जानते हो
सही-गलत
लेकिन कहां मानते हो
अपनी सुविधा में
सही/गलत
बस जीना है
चालाकी बुद्धि द्वारा स्थापित
चंद मापदंडों में
जिसे दूसरों की संवेदनाओं से
कभी मतलब नहीं है
अपना मतलब ही सही
मानते हो
जिसे जीने के लिए
स्वीकार कर चुके हो
पूरी तरह से !!!!
---राजकपूर राजपूत''
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