मन के भ्रम में फंस जाना Poetry of Confusion Mind

Poetry of Confusion Mind 
मन के भ्रम में फंस जाना
दूसरों की बातों में आ जाना
दृष्टि वहां तक पहुंच ना पाना
जहां तक दूसरों को समझ जाना
खुद पे भरोसा ज़रूरी है दोस्तों
दूसरों की बातों में फंस मत जाना !!!

वो धीरे-धीरे अनुकूल हुए
उसकी मीठी बातों से सुकून हुए
जब-जब सुनी उसकी बातें
अपनी सोच अपना ख्याल खोते हुए
जागते तो जागते कैसे
नई सोच नया तर्क से फांसते हुए !!!

Poetry of Confusion Mind


भ्रम 
भीड़ के समर्थन में
सच्चाई होती है
आजकल
गलत लोगों के साथ भीड़ देखी गई
जबकि सच्चाई अकेली में
रोती गई !!!

भ्रम
उम्र के साथ
ज्ञान बढ़ता है
जबकि मुर्खता बढ़ती है
ज्ञान घटता है !!!!

भ्रम
ज़िंदा है
मुर्खों के बीच में
पढ़ें लिखे
और अनपढ़ों के बीच में
वर्ना कोई इस तरह
आतंकवादी नहीं बनता
आत्मघाती !!!!
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भ्रम
मेरा प्रेम
अपने दिल के बहकावे में
प्रेम समझता रहा
जिसने कभी प्रेम
समझा नहीं उसे !!!!

भ्रम
भीड़ भी है
जो आंदोलन का हिस्सा है
जरूरी नहीं न्याय की लड़ाई हो
कुछ समान लालची लोग
इकट्ठे हो कर चिल्लाते हैं
ताकि
उसकी ऊंची आवाजों से
बदला जा सके
सच को !!!

भ्रम
जीने में
उन्मुक्त स्वतंत्रता नहीं देता है
रोकते, टोकते ज्यादा है !!!!

---राजकपूर राजपूत''राज''

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