Jindgi-chahti-hai-mujhase
जिंदगी चाहती थी मुझसे
बातें करता रहूॅ॑ मैं तुझसे
चाय की चुस्कियों के साथ
मेरी मुलाक़ात हो तुझसे
तू नहीं तो बेरंग है जिंदगी
कैसे शिकायत करूं मैं तुझसे
मुश्किल से मिलें हो "राज़"
बिछड़ना ना चाहूं अब मैं तुझसे !!!
तुम आना
जिंदगी चाहती है
तुम आओ
जैसे आ जाता है
जून में मानसून
समुंद्र की नमी लेकर
और सींच देता है
अपनी शीतलता
धरती के चारों
तपती धरती को
आराम मिल जाता है
वैसे ही आना तुम !!!
-राजकपूर राजपूत
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