Pahli barish poem in hindi
बरसों से तपती धरती पे
दरारें पड़ रही थी
ना जाने कब से
झुलसती ऑ॑खों से
नीला आसमान को
एकटक देख रही थी
इसी उम्मीद में
कभी तो बादल बरसेंगे
फिर ना कभी हम तरसेगे
पल पल दिन गुजरें,
आखिरकार बादल गरजें
और पहली बारिश की
कुछ बूंदों से
मिट्टी से सौंधी खुशबू उड़ने लगी
मानों अतृप्त मन कहने लगा
और बरसों रे ! बादल
मेरी प्यास मिटाने तक !!
मैं इतंजार करूंगा
तुम्हारे आने तक
तुम ठहरना
मेरे प्यास बुझाने तक
रिमझिम बरसना
दो बूंदें गिरकर
न तरसाना
नदी,झील, तालाब के भर जाने तक
तुम बरसना
जैसे मिलते हैं
आंख भर आने तक !!!
बारिश तुम आना
तन मन भिगो देना
सारी रात !!!
---राजकपूर राजपूत''
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