यहां किसी को क्या कहिए
बदले हुए जमाने में किसी से क्या कहिए
बहरे-बहरे से लगते हैं उनसे क्या कहिए
दोस्त कई मिल जाएंगे साथ में बैठें हुए
फोन पे बिजी हैं तो उनसे क्या कहिए
बातें मेरे जज़्बातों की करते हैं सभी
लहजे घुमावदार है तो उनसे क्या कहिए
लगता था वो मेरी बातों को गौर कर रहा है
सियासतदान है तो उसने क्या कहिए
तकरीर ही करने में उसे आराम लगता है
सच को झूठ करते हैं तो उनसे क्या कहिए
जो दुहाई देते हैं अक्सर कानून की
फर्ज़ नहीं हक की बातें करें तो उनसे क्या कहिए
---राजकपूर राजपूत''
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