सच और झूठ essay on truth and falsehood

सच और झूठ 


यह सच है कि चाहे कोई कितना भी निष्पक्ष खुद को माने,, दिल से पसंद,,,, खुद की सोच,, रूचि,, दिल्लगी,, जिससे मिलती है,,,उसी से बनती है । essay on truth and falsehood 
आज के जमाने में समझदारी,, चालाकियों का पर्याय बन चुके हैं । दिल के इरादे,, चुपके-चुपके प्राप्त की जाती है ताकि लोगों को ख़बर ना हो । वो कहते है ना,,, ऊंट की चोरी निहरे-निहरे ।

essay on truth and falsehood 

खुद की पसंद को सर्वोपरि मानना,,, खुद के विकास को प्राथमिकता देना,,,आज के जमाने में प्रचलित है । फैशन के रूप में । अधिकारों की समझ ना हो तो बेवकुफ समझे जाते हैं । व्यक्तिगत विकास की अहमियत इतना ज्यादा देते हैं कि समय के अनुकूल होना सभी सीख गए हैं । इसी कारण शायद लोग झूठ बोलते हैं । 

दिखावे की जिंदगी में बातें बड़ी-बड़ी लेकिन कार्यशैली में कुछ भी नहीं । सभी अच्छी बातों को जानते है। बातें करते हैं जरुरत पड़े सच्चाई की तो अमल करना उसकी सहुलियत पर निर्भर करते हैं । यदि उसके हित और समय को कोई चोट ना पहुंचे तो कहने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी । लेकिन यदि उसके हितों को थोड़ा बहुत भी नुकसान का अनुमान हुआ तो वो सच को तोड़ मोड़कर के अपने सुविधानुसार ग्रहण करेंगे । ताकि उसकी छवि को कोई नुक्सान ना हो ।हर झूठ को कुछ सच्चाई मिला के पूरी तरह से सच बनाने की कोशिश करते हैं । 

बातों में क्या है -


बातों में सौम्यता और अपनापन ऐसे होते हैं कि साधारण इंसान से लेकर बुद्धिमान भी सीधे तौर पर उसे समझ ना पाए । हालांकि उसके दिल की गहराई में उसे सच्चाई महसूस हो जाती है लेकिन वह भी कह नहीं सकते हैं ।
क्योंकि तर्क करने बैठ गए तो सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने में केवल बातों में माहिर लोगों के लिए बहुत ही आसान होता है । जो अपनी बातों को किसी के सामने कह नहीं पाते वो हमेशा पराजित रहते हैं । 
रिश्तों की थकावट यही है कि आप उसे समझ रहे हैैं लेकिन सामने वाले बड़ी होशियारी से झूठ को सच साबित करने में लगे हैं । जिसकी अनुभूति आपको है,, मगर कह नहीं सकते हैं । क्योंकि उसने कुछ सच का सहारा लिया है । जिससे वो सामने वाले को थकाने की कोशिश कर रहे हैं । 
ऐसे में लाज़मी है कि आप उसके प्रति उदासीन हो जाएं । उससे कुछ दूरी बना लें लेकिन दिल में बैठाने का प्रयास कभी नहीं करेंगे । 
---राजकपूर राजपूत
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