अवहेलना भाग 9

कल्याणी,दीपक को एकटक देखने लगी । उसे दीपक की बातें बहुत बुरी लग रही थी । कितनी आसानी से कह देते हैं अपनी बातों को । सामने वाले की ज़रा भी परवाह नहीं ।

""जहां प्रेम नहीं वहां विश्वास नहीं । कई साल हो गई है शादी को,,  लेकिन अभी तक मुझे समझ नहीं पाए,, भरोसा नहीं कर पाए। यहां भी तो पुरूष प्रधानता है । आप आसानी से मुझपे सवाल उठा दिए । यही बात आपको कहती तो आप बुरा मान जाते ।मार पीट भी कर देते,, लेकिन नहीं । मुझे कहने का हक है आपको । क्योंकि मैं एक औरत हूं ।  जब एक लड़की घर से निकलती है, तो अपने बदन को बार बार ढकने की कोशिश करती है,, पुरुष की कनखियों से । चलते,, उठते,, बैठते समय जो असहज महसूस होते हैं,,, एक औरत या लड़की ही जाने लेकिन पुरुष निहारते रहते हैं । उसे कहां कोई जिम्मेदारी !! उसे तो बस मज़ा लेना है । निहार कर । एक पुरुष की निगाह,,दुषित मन से अट्ठाहस भरता है,, एक लड़की की अस्मिता पर !!! जिसे एक लड़की अच्छी तरह जानती है । क्योंकि यहीं उसकी रोज की जिंदगी है । लेकिन पास खड़े कोई अन्य व्यक्ति कभी टोकते हुए नहीं मिलेंगे  । इन्ही सब बातों के कारण एक लड़की को घर की चारदीवारी में रखते हैं ना,, लड़कों को इसी लिए आजादी देते हैं । बाहर पुरुष प्रधान समाज है,,, जो लड़कियों को कुछ नहीं समझते हैं । कोई सम्मान नहीं देते हैं । सब केवल भोग की नज़र से देखते हैं । मैं नहीं चाहती कि कोई लड़की का शोषण हो ।  ""

दीपक उसकी बातों को सुन तो रहे थे लेकिन बुरा मान के ।

""भाषण देने में माहिर हो । किसी भी बात पर । एक बार शुरू हो गई तो फिर बंद होने का नाम नहीं लेती हो । यह भी मत भूलो कि एक लड़की भी अनावश्यक रूप से अपने बदन को लड़कों के सामने ढंकती है ,, दिखाने का प्रयास करती है । जिससे लड़कों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें । मैंने भी देखा है कुछ लड़कियों को जो जानबूझकर अपने अंगों से इशारें करते हैं । पुरुष भावनाओं को जगाने के लिए ।"

 दीपक, कल्याणी की बातों को काटते हुए कहा । 

बातचीत,बहस में आ गए थे । जो हार- जीत और केवल जिंद में बंद होने वाला था ।  इसी शैली मेंं दोनों बातें करने लगे ।

""हां,,हो सकती है कि कुछ लड़कियां ऐसा ही करें । लेकिन इनकी संख्या नगण्य है । ज्यादातर ऐसी स्थिति में लड़कियां सहज प्रवृत्ति में क्रिया करते हैं । कुछ प्रवृत्तियों को चेतन मन बिना प्रयास या अनजाने मेंं ही कर देते हैं । सामने वाले के व्यवहार को अचेतन मन अपने भीतर समेटे हुए होते हैं । जब कोई पुरुष हो तो पुरुष की निगाह की समझ पहले से ही होती है जिससे प्रतिक्रया स्वरूप प्रगट हो जाते हैं,,, जैसे पलकों के सामने कुछ चीजें जब अचानक आ जाती है तो पलकें बंद हो जाती है ,, ठीक वैसे ही । जो लड़कियां दिशाहीन है उसे जरूर बताएं । ताकि गलत कदम ना उठाए । उसे समझाएं । ना की दबाव डालें । मैं तो शालनी के बारे में यहीं कहना चाह रही थी । लेकिन आप मुझे ही गलत समझने लगे ।""

बहन का नाम सुनते ही दीपक गुस्से से लाल हो गया । खिसियाते हुए कहा-

"अब बस भी करो । शालनी के बारे में,, मेरी बहन ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । जो उसे गलत साबित करना चाहती हो । "" 

"आप इतने नाराज़ क्यों होते हो । शालनी पढ़ाई- लिखाई कर रही है । बेचारी भटक जाएंगी । घर वाले ही परवाह नहीं करेंगे तो कौन करेंगे !! अभी उनका ध्यान पढ़ाई लिखाई में होना चाहिए । यौन आनंद की अनुभूति ही ऐसी है कि ध्यान भटक जाएं । किशोरी अवस्था में ही तो भटकने का भय रहता है । "कल्याणी ने बड़े प्यार से कहा ।

"बस करो । क्या कह रही हो कुछ होश है !! अब एक शब्द ना कहो,, नहीं तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा । "

कल्याणी और दीपक दोनों चुप हो गए । दोनों एक-दूसरे को समझाने में असमर्थ थे ।  प्रेम की कमी स्पष्ट दिखाई दे रहा था । आपसी बातचीत से कुछ निर्णय ले सकते थे लेकिन नहीं । 

कल्याणी अपनी बातों को सही मान रही थी  । कहीं प्रकाश वाली बातें सही हैं तो,, निश्चित ही शालनी का ध्यान भटक जाएगा । उसकी पढ़ाई लिखाई प्रभावित होगी । इस उम्र में जो प्रेम का एहसास होता है,,यौन भावनाओं के आवेश है । यौन क्रियाओं के कारण परस्पर खिंचाव महसूस होता है । जिसमें समझ नहीं बनती है । बहक जाते हैं । 

इधर दीपक कल्याणी की सोच को ही गलत मान रहे थे । एक स्त्री द्वारा यौन अंगों या संबंधों के बारे में ज्यादा बातें करना,, जानकारी नहीं है,, चरित्रहीनता है । लोग यही मान बैठते हैं कि कुछ कर गुजरें है तब ही इतनी जानकारी है । दीपक अब उसके चरित्र पर ही शक कर रहे थे । उस बेचारी को इतना भी महसूस नहीं थी कि उसकी बातों का दीपक पर क्या असर हुआ? जो अपने जीवन में महसूस किए थे उसे पती के सामने कह दिए । गलत है तो समझाते । कोई बात दिल में क्यों रखते हैं !! पति-पत्नी एक-दूसरे से खुल के बात नहीं करें तो किससे करें ? लेकिन नहीं दोनों करवट बदल के सो गए । 

दीपक जब सुबह उठा तो सीधे अपनी माॅ॑ के पास गया । शालनी के बारे में बात करने के लिए । सच क्या है,, ? झूठ क्या है ? मां-बेटे में धीरे धीरे बातें हो रहे थे । सासू मां के कमरे में । कल्याणी काम की वज़ह से जाते तो चुप हो जाते । मानों घर की कोई राज़ उसके सामने ना खुलें । दुश्मन है इस घर का । 

कल्याणी जब दुबारा उस कमरे की ओर गई तो शालनी भी आ गई थी । शायद,, उसे समझा रहे थे । कल्याणी को देखते ही उसके चेहरे का भाव बदल गया । मानों उसके ही कहने पर सबकुछ हो रहा है । 

लेकिन, मैंने तो अपने पति से कहा था । ना की शालनी को । कभी उचित अवसर देख के कह देते । आज ही जरूरी तो नहीं थी । लेकिन उसे तो मेरी परवाह नहीं है ।घर वाले मुझे ही बुरा मानेंगे ।  कल्याणी घर के काम करते हुए सोचने लगी । 

कुछ देर बात कर लेने के बाद जब दीपक कमरे में आया तो कल्याणी झाड़ू लगाने के बहाने से कमरे मेंं आ गई ।

दीपक बड़ी  तसल्ली के साथ बैठा हुआ था लेकिन फिर भी किसी बात की खिन्नता थी । जिसके वजह से उसके चेहरे का भाव बदला हुआ था । कल्याणी को लगा कि उसे देखकर वो बातें करेंगे, परंतु दीपक को कोई फर्क नहीं पड़ा । आखिर कल्याणी ने ही पूछा -

"क्या हुआ कुछ परेशानी है ? "

"कुछ भी नहीं,, तुम अपना काम करों । "

कुछ देर चुप रहने के बाद कल्याणी को लगने लगा कि दीपक कल की बातों से नाराज़ हैं । अपनी गलती सुधारते हुए बोली-

"मेरा ऐसा इरादा नहीं था कि मैं शालनी को गलत साबित करूं । मुझे क्या मिलेंगी । मैंने तो केवल आपसे बातें की । आप तो सीधे मां जी के पास जाकर कहने लगे । अब वो लोग मुझे ही गलत कहेंगे । "
"इतना ही समझ है तो फिर कहते ही क्यों हो ! जो सच है उसे मैंने पूछ लिया । "
कल्याणी कुछ ना बोली । चुप ही रही । 
"मुझसे गलती हो गई । "
"तुम्हारी सोच ही बुरी है । कब,, क्या बोलना है इस बात का होश नहीं । मुझसे इस बारे में बात मत करो ।ग्वार ,, ।
 "
कल्याणी चुपचाप दीपक को देखने लगी । 



क्रमशः


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