वक़्त और इंसान Time and man article

Time and man article वक़्त नहीं बदलते,,, आदमी बदलते हैं वक्त को । सुई का कांटा वहीं होता है,,बस आदमी के इरादे बदल जाते हैं और लोग कहते हैं कि वक्त बदल गया है । ऐसे कहने वाले यह नहींं बताते कि आदमी कितना बदल गया है या फिर वे खुद ही कितना बदल गया है ।आज मौसम खराब है या उसकी तबीयत खराब है । मौसम के कारण वो बदले हैं या तबियत के खराब के कारण मौसम बुरा अहसास हो रहा है । पता नहीं, लेकिन  सारा दोष सिर्फ वक्त पर ला देते हैं ।

Time and man article

 
यह एक पूर्वाग्रही धारणाएं हो सकती है लोगों की,,, जो किसी समाज में प्रचलित सच्चाई या बुराई को सहज ही स्वीकार कर लेते हैं । अपनी बुद्धिमत्ता से प्रचलित वर्तमान प्रतिमान के अनुरूप खुद को ढालने की कोशिश करते है । ताकि वर्तमान में स्थापित समाजिक स्थिति को प्राप्त कर सकें । 
 जिसे समाज के तथाकथित बुद्धिजीवियों के द्वारा बार -बार प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं । ताकि इन्हीं सिद्धांतों का प्रतिपालन हो सके ।  जिससे उसे समाज में अच्छे इंसान के रूप में सभी स्वीकार कर सके । 
यह भी ज़रूरी नहीं कि जो पहले के महान विभूतियों के द्वारा स्थापित समाजिक प्रतिमान आज की इस दौर में शुद्ध रूप में बचा हो । जिस शुद्धता के साथ किसी विचारधारा को सही ठहराया है वो आगे चलकर उसे परिमार्जित करने वाले अपने बुरे इरादों को उसमें शामिल किया है या नहीं । इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकते हैं ।

रंग बदलना 


जबकि वर्तमान परिदृश्य में तो लोग बस अवसर अनुरूप रंग बदलते हैं । अपने ही समान विचारधारा के लिए एकत्रित होते हैं ।  सच और झूठ अपने किसी स्वार्थ की सिद्धि और उसके समर्थन अपनी सुविधा के आधार पर ही निर्धारित करते हैं । हक़ के प्रति सभी जागरूक करेंगे लेकिन कर्तव्य को बताने वाले आपको कम ही मिलेंगे । बताएंगे तो भी वह स्वयं इसे अपनाएंगे इस बात संदेह है । लोग एक ही सत्य को कई रूपों में दिखाने का प्रयास करते हैं । स्वयं के लालच को प्राप्त करने के लिए सियासत का रास्ता अपनाते हैं ताकि लोगों के बीच उसका सम्मान बना रहे । और सत्य उसके इन्हीं स्वार्थो के बीच फंसा,, बिना आश्रय के किसी कोने में पड़ा रहता है । उपेक्षित होकर । जिसे देखने वाला मुश्किल से मिलते हैं ।

इसके पीछे का मूल कारण यह है कि समाजिक न्याय की बातों में व्यक्तिगत स्वार्थ का होना । क्योंकि आजकल समाजिक भावनाएं हासिए में है, व्यक्तिगत जीवन के सामने । लोग उसी बातों के लिए जुड़ जाते हैं जिसके प्रति उसकी खुद की श्रद्धा हो । कहीं ना कहीं स्वार्थ की भावना हो ।
व्यक्तिगत जीवन में ईमानदारी,, सच्चाई,,या फिर पुराने जमाने में प्रचलित किसी सत्य का समर्थन तो जरूर करेंगे । लेकिन उसको पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं करते हैं या हो सकता है कि उन्हें कष्ट का अनुभव हो । क्योंकि वर्तमान सोच उपयोगितावादी है । 
उपयोगितावादी सहज मार्ग अपनाते हैं ।  ऐसे में भला किसी भी सोच या ईमानदारी को बिना किसी फायदे के समर्थन करना मुश्किल है ।
 हां,, कुछ लोग आज भी शुद्ध रूप में जीना चाहते हैं लेकिन उसकी सोच हासिए में है । व्यापार की दृष्टि से घाटे का सौदा है  । जिसे कोई आजमाना नहीं चाहते हैं ।
सत्य आज भी सत्य है और समय आज भी अपनी गति के अनुसार चल रहा है । केवल लोग ही अपनी नजरिए को बदल दिए हैं  । वक़्त बदल गया है, कहने वाले अपनी सुविधा और स्वार्थ को नैतिक आधार देने का प्रयास करते हैं । जो केवल अपने आप को सही साबित करना चाहते हैं । समय सत्य है,,, जबकि लोगों के इरादे चलायमान है । 

इंसान नहीं बदला है 
बस नजरिया बदला है 
वो दोस्त बदल दिए 
मतलब बदल दिए !!!!
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