बन गई थी दुरियाॅ॑ जिससे फिर मिले हैं
मुसीबत ने सिखाई है अपनो की पहचान
बूढ़ी दादी माॅ॑ की आंचल से फिर मिले हैं
कहें थे कभी क्या रक्खा है मेरे गांव में
ये पेड़-पत्ते, नदी-तालाबों से फिर मिले हैं
लाखों लोगों से मिलना जुलना बंद है मेरा
आज फुर्सत है मुझे खुद से फिर मिले हैं
गाड़ियों के धूऍ॑ और आवाजों से ढका मेरा मन
बरसों बाद नीला आसमान से फिर मिले हैं
भीड़ की शोर में सुनाई ना दी जिंदगी का राज़
चिड़ियों की चहचहाहट से फिर मिले हैं
---राजकपूर राजपूत''राज''
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