कुछ नहीं तू मिट्टी की काया है
इस क़दर तू गूरूर मत कर
एक दिन मिट्टी में ही समाया है
जो ठोक रहे थे जांघ निशदिन
वक़्त ने सबको थप्पड़ लगाया है
बुरे वक्त भी कहाॅ॑ ठहर पाएगा
कभी धूप तो कभी छाया है
प्रभु ने दिया सब कुछ कर्म कर
तेरे दिल में आलस क्यों आया है
कहाॅ॑ से तु आया है कहाॅ॑ तुझे जाना है
प्रेम के सिवा दुनिया में क्या पाया है
तोड़ दे सारे भ्रम जगत का ज्ञान पाएगा
बांट लो ये राज़ तू क्यों शरमाया है
---राजकपूर राजपूत''राज''
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