हक़ पहले और फर्ज देखेंगे

हक़ पहले और फर्ज देखेंगे



हक़ पहले और फर्ज देखेंगे
अक्लमंदों की बस्ती में देखेंगे

सच है कि ज़माना बदल गया
कैसे टिकेंगे ईमान अब देखेंगे

बेहद करीब है वो शख्स मेरे

आजमा के उसे भी देखेंगे

जो लिखते हैं बड़े-बड़े लफ्ज
जमीं पर लाकर उसे देखेंगे

बड़ी - बड़ी बातों को पढ़ते हैं अक्सर
छोटी - छोटी बातों को देखेंगे

इतना ही चिंता है दुनिया की तो
सुधर जाएंगे अगर खुद को देखेंगे 

उससे मिलकर ऐसा लगता है
एक बार फिर उसे देखेंगे

तलाश तो बहुत की मगर
अभी जी भरा नहीं फिर देखेंगे 

---राजकपूर राजपूत


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