ज़हर Poison in his Words Poem

Poison in his Words Poem 
उसकी बातों से
महानता दिखाई देती है
जैसे कोई विचारक हो
जैसे कोई समाज सुधारक हो
वो उंगली उठाना जानते हैं
किसी दूसरे पर
जो खुद फंसे हैं
दलदल में
बुराइयों के
अपने गिरेबान में झांक लेते
खुद को कुछ समझा लेते
तब मानते कि
वो पूर्वाग्रही नहीं है
इरादे दुषित नहीं है
उनके
लेकिन हिम्मत नहीं है 
उसके पास
जो हक जानते हैं
फ़र्ज़ नहीं
जो अक्लमंद है
जिसके सामने
देश के मायने कम है
ऐसे सांपों से
यही कहुंगा
अपना ज़हर
उतार के कांटे
ताकि असर ना हो
किसी पर  !!!


Poison in his Words Poem


सीधे ज़हर नहीं दिया
लेकिन मारने की कोशिश की
कई बहाने से
जो ज़हर से भी
ज्यादा कहर ढाने की बातें थीं
चुपचाप विनाश करने लगे
कभी पेड़ काटे
कभी कुड़ा डाले
बंजर कर दिया जमीन
गंदा कर दिया नदी
विकास के नाम पर
सही साबित किया
विचार के नाम
सुविधाओं में निकले शब्दों को
ज्ञान कहा गया
और खुद को साबित किया
विद्वान
जो निर्माण नहीं कर रहे हैं 
बल्कि धीरे-धीरे
खत्म कर रहे हैं
देश, संस्कृति
इस देश के महान राष्ट्र को
तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा !!!!

सीधे ज़हर नहीं दिया
खुद पानी पी कर
तुम्हें पिला दिया ! !!

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---राजकपूर राजपूत''राज''




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