प्रेम की अनुभूति feeling of love story

समीर गरीब लड़का था ।feeling of love story दसवीं की परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त करने के बावजूद परेशान था कि वह कौन-सा विषय का चुनाव करें । गरीब होने के कारण घर में माॅ॑-बाप के कामों में साथ देने पड़ते थे । जो उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं था । मेहनत-मजदूरी..! उसकी इच्छा थी कि वह पढ़- लिखकर अपने घर की हालतों को सुधारेंगे । वे अपने वर्तमान स्थिति से खिन्न थे । न अच्छे कपड़े -लत्ते पहन पाते थे और नहीं अपने शौक पूरा कर पाते । खेतों में काम करने से पढ़ाई को पर्याप्त समय नहीं दे पाते थे । इसलिए उन्होंने अपने लिए कला संकाय के विषय को चुना।

feeling of love story

जबकि उसकी पसंद मैथ्स में था । कक्षा के ज्यादातर दोस्त अन्य विषय लिए थे । कुछ लड़के आगे की पढ़ाई के लिए शहरों में ( अच्छे स्कूलों में) दाखिला ले लिए।
ग्यारहवीं कक्षा में लड़कियाॅ॑ कम थी । गांव-देहातों में दसवीं के बाद लड़कियों को आगे पढ़ाई न करा के घरों और खेती के काम में लगा देते हैं ताकि ससुराल जाने से पहले सभी काम सीख लें ।
कक्षा में पांच लड़कियाॅ॑ थी और लड़के चालीस के आस-पास।
लड़कियों में एक लड़की थी- निशा , बेहद खूबसूरत थी ।कक्षा में किसी से भी ज्यादा बातें नहीं करती थी । वह हमेशा चुप ही रहती थी । कक्षा में आवारा लड़के उसे घूरते थे लेकिन निशा उसकी ओर ध्यान नहीं देती थी । न जाने किस ख्याल में खोई रहती ।
समीर कभी उससे बात नहीं की थी । फिर भी उसे न जाने क्यों ऐसा लगता कि निशा, अपनी सहेलियों से उसके बारे में बातें करते हैं । बातें करते समय समीर की ओर इशारा करती। शायद..! बताती थी कि कक्षा में समीर बहुत होशियार लड़का है । उसकी आॕ॑खों में समीर के प्रति आदर का भाव साफ़ दिखाई देती थी । समीर की तारीफ खुलेे मन से करती । जिसका अहसास  उसको भी था । जिसे देखकर वह अपने अंदर उसके प्रति अपनापन महसूस कर जाते । समीर भी कई बार बात करने की कोशिश करते लेकिन बात नहीं कर पाते । क्या समझेंगे...! आवारा..! नहीं..! नहीं..!
यही सोच के रुक जाते ।

निशा में सुंदरता के साथ-साथ सादगी भी थीं । सुंदर गौर वर्ण, चेहरे पर हल्की मुस्कान, आंखों में हल्की सी काजल लगाती थी । लिपिस्टिक इस ढंग से लगाती मानों पता ही ना चले । जो पतले होंठों में ऐसी जचती मानों गुलाब की पंखुड़ियाॅ॑ हो । सब कुछ सही थी । एक बार जो देख ले सहज ही आकर्षित हो जाए । रह- रह के समीर का मन खींचा जाता था । जो केवल एक आकर्षण था ।

इतिहास के सर बहुत ही सक्त थे । वे सबको अक्सर डांट- फटकार लगाते थे । वह हमेशा कहता था कि कोई भी विषय छोटा- बड़ा नहीं होता है । सबमें मेहनत करना ही पड़ता है ।
इसी उद्देश्य को परखने के लिए उन्होंने सभी लोगों का टेस्ट परीक्षा ली।

जहाॅ॑ तक पढ़ाएं थे, वहां तक का ही प्रश्न पूछे गए थे । समीर के लिए प्रश्न सरल जान पड़ा और वो जल्दी -जल्दी लिखना शुरू कर दिया । सभी लड़कों और लड़कियों ने भी ऐसा ही किया। धीरे-धीरे परीक्षार्थी परीक्षा देकर जाने लगे । कुछ देर बाद लगभग परीक्षा हाल में समीर और निशा ही बच गए।लगभग दस मिनट का समय बचा रहा होगा ।

इतने में सर ने कहा - "समीर तुम दोनों प्रश्नों को हल करके उत्तर पुस्तिका को आफिस में जमा कर देना। मुझे आफिस में कुछ काम करना है । अभी कुछ समय और बचा है।"

" ठीक है,सर जी"। समीर ने कहा।

सर जी,मुझपर बहुत भरोसा जताते हैं । सोचते-सोचते समीर लिखते रहे । कुछ प्रश्र के ही उत्तर लिखना बचा था । तभी पीछे से निशा ने आवाज लगाई-"समीर"

अपना नाम सुनते ही समीर धक से रह गया । उसे पता था कि आवाज किसने दिया है। समीर को परीक्षा में किसी को उत्तर बताना या दिखाना अच्छा नहीं लगता था। और आज निशा उसकी उत्तरपुस्तिका मांग रही थी । लेकिन निशा को मना नहीं कर सका और उसने अपनी उत्तरपुस्तिका दे दी । जल्दी- जल्दी उसने देख के लिखना शुरू कर दिया ।

इधर समीर डर रहा था कि कहीं सर न आ जाए सर के नज़रों से गिर जाएंगे । आफिस के दरवाजे पर ध्यान लगा कर देखते । निशा को देखते तो गर्व महसूस करते । भय और खुशी के बीच में फंसे थे ।कई बार सोचते कि जल्दी बना नहीं लेती । बहुत ही गधी है..। हाॅ॑, वो जल्दी- जल्दी ही लिख रही थी । समीर आफिस के दरवाजे पर ध्यान लगाए थे ।

तभी कोई आवाज सुनाई दी । जिसे वो सुन नहीं पाया । फिर उसने आवाज लगाई-"समीर"

इस बार पलटे तो निशा उसके के सामने ही आ गयी थी। उत्तर पुस्तिका के साथ । समीर को जैसे आराम मिल गया।भारी डर से मन हल्का जान पड़ा ।
दोनों के उत्तरपुस्तिका को आफिस में जमा किया और समीर जब बाहर निकला तो निशा इंतजार कर रही थी । दोनों साथ-साथ चलने लगे । समीर का गांव पास में ही था । निशा का उसी गांव में जहाॅ॑ स्कुल था।आज निशा के साथ चलने में समीर को अच्छा लग रहा था । उसका दिल में हिलोरें उठ रहे थे।
" आप बेहद खूबसूरत हो।"समीर ने कहा ।

और निशा उसको देखने लगी । मानो कुछ कहना चाहती हो । लेकिन चुप ही रही । इधर समीर का मन बेचैन हो रहा था, बात करने के लिए । इधर- उधर की बातों में रास्ता कब अलग होने को कहा । पता ही नहीं चला ।
कुछ देर समीर उसे पलट के देखते रहे लेकिन निशा चुप चाप चली गई । उसको समझने में कहीं गलती तो नहीं कर रहा हूॅ॑ । समीर सोचते हुए घर आ गए । कई बार निशा के चेहरे आॅ॑खों में आ ही जाते थे । इस अहसास को वह बनाएं रखते । उसकी खूबसूरती का कायल हो गए थे ।

कक्षा में निशा आते तो उसे ताकने की कोशिश करते । लेकिन निशा को कोई अहसास नहीं था । फिर भी आवारा मिजाज के दोस्त कहते कि वह तुमसे ही दिल्लगी करती है । बाकी लोगों को ज़रा सा भाव नहीं देती है । घमंडी लड़की ..!। उसके बारे में ये सब सुन के समीर को बुरा तो लगता था । अपने दोस्तों को मना भी करते और बताने की कोशिश करते कि ऐसा कुछ भी नहीं है । न जाने क्यों अंदर ही अंदर ख़ुश भी होते । क्यों मेरे दोस्त लोग ऐसा कहते हैं । कहीं सचमुच मुझसे..! उसकी नज़रों को देखते तो अपनापन के भाव में डुब जाते । कई बार कोशिश की, अपने मन की बात बताने की, लेकिन कह नहीं पाते । सहज आकर्षण था, उसके अंदर ।
आखिर वार्षिक परीक्षा के समय बात करने का मौका मिल ही गया ।
समीर ने बात को ऐसे ही शुरू किया कि बारहवीं के बाद क्या करोगे तो उसने झट से जवाब दिया

"प्राइवेट काॅलेज"

"आप तो ऐसे कह रहे जैसे पहले से ही सोच रखे हों"

"हां, बहुत पहले से"

"क्यों"

निशा एक पल समीर को देखती रही । जैसे वो समीर को कुछ समझाना चाह रही हो । फिर उसने कहा-"एक- दो साल बाद मेरी शादी हो जायेगी ।"
यह सुनते ही समीर का चेहरा उतर गया । एक हताशा पूरे शरीर में दौड़ गई । जिस भाव को वो सहेजे थे , एक ही झटके में टूट गए ।
फिर भी बनावटी चेहरे से पूछा-"इतनी जल्दी शादी के लिए तैयार हो गई । अभी उम्र ही क्या हुई है !''

वो कुछ याद करती हुई बोली-"मेरी पढ़ाई तो लेट से ही शुरू हुई थी । दाखिला के समय मुझे परदेश ले गए थे । मेहनत-मजदूरी करने के लिए माॅ॑- बाप । अभी मेरी उम्र तो अट्ठारहवें से ऊपर है । जिससे मेरी शादी होगी । उसे बचपन से जानती हूॅ॑ ।अब उसकी याद बहुत आती है..! इसलिए पढ़ाई में मन नहीं लगता है । वो भी काॅलेज की पढ़ाई कर रहा है ।"

यह सब सुन के समीर कुछ ना कह सका । और भी कई बातें हुई लेकिन समीर का ध्यान नहीं रहा । और निशा चली गई।
कुछ समझाना चाह रही थी, लेकिन समीर को देख कुछ ना बोल सकी । निशा पढ़ने में कमजोर जरुर थी लेकिन समझ में कई लोगों से आगे थी ।

इधर समीर की हालात अजीब हो गई । निशा के चेहरे को भूलने की कोशिश करता लेकिन भूल ही नहीं पाते । अपने आप को समझाते, लेकिन समझा नहीं पाते । बार बार के ख्याल ने उसके दिल में जगह बना ली थी ।

निशा को जैसे कुछ भी फर्क नहीं पड़ा हो । जैसी थी वैसी ही स्कुल आती । समीर के प्रति उनका व्यवहार वैसी ही थी, जैसे पहले थे । समीर दोस्तों को अपनी दिल्लगी बताई । सभी ने कहा कि वह लड़की ही घमंडी है । धीरे-धीरे समीर को भी अहसास होने लगा कि सब सच ही कह रहे हैं । वो मुझे बेचारा समझता है । निशा मुझे केवल दयाभाव दिखाती है । उसे किसी से मतलब नहीं है ।
समय धीरे-धीरे गुजरते गए । आखिर एक दिन निशा उसके पास आई और बोली-
"समीर मुझे पता है कि तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो ।जान के दुःख भी लगा ।मेरी जिंदगी तो उसके पास है । जिसे मैं बचपन से जानती हूं..। पहले मेरे बारे में पूछ तो लेते या पता कर लेते । मेरी चाहत क्या है..?सहज आकर्षण को प्रेम समझ लिए ।"
आकर्षण प्रेम ज्यादा गहराई की बात को महसूस नहीं कर पाते है ।
"कौन कह दिया तुम्हें ,कि मैं तुम्हारे बारे में ग़लत सोचता हूॅ॑ ! हाॅ॑ ,आपकी सोच के बारे में जरूर कुछ कह गया हूॅ॑ , मुझे माफ़ करना" ।

"सोच..! कैसी सोच..?

"यही कि आपका कोई भी सपना नहीं है"।

"सपना तो है,उसके साथ रहने का। उसके साथ जीवन गुजार दूॅ॑। मुझे ज्यादा नहीं चाहिए ! बस उसके साथ रहूॅ॑ ।अब सब लोग मुझे बेवकूफ समझे या अच्छा..! परवाह नहीं...! मुझे अब लगता है कि मैं किसी भी तरह आगे बचें पढ़ाई को पूरा कर लूॅ॑ । इसी लिए तुम्हारी उत्तर पुस्तिका को मांगा थी, लेकिन आगे से मैं भी किसी का नकल नहीं करुंगी । अपने दम पर ही बचे पढाई पूरी करुंगी"।

बहुत ही आत्मविश्वास के साथ बोली।

समीर कुछ नहीं कहा । उसके विश्वास को घमंड ही मान रहा था । अपनी खुबसूरती पर नाज़ है उसे ।

निशा फिर बोली-"क्या हम दोनों दोस्त नहीं बन सकते ! एक लड़की को लोग ग़लत रूप में ही देखते हैं । जो कि गलत है । तुम मेरे अहसासों को देखने की कोशिश नहीं कर रहे हो । लेकिन मुझे तुम्हारा अहसास है । जिस एहसास से सुकून मिलती है, उसे मैं बनाएं रखना उचित समझती हूॅ॑। चलो ! क्यों ना हम ऐसे ही दोस्त बने रहे।"

समीर चुप ही रहा । उसकी उदासी को देख निशा भी चुप हो गई। कुछ देर बाद समीर ने कहा-"ये समय बताएगा कि आप सही है कि मैं । दोस्ती हमेशा रहेगी ।"

और दोनों चुप हो गए । कुछ देर बाद निशा उठ के चली गई । उसके बाद से दोनों कभी एक-दूसरे से बातचीत नहीं किए । अपनी-अपनी सोच को ही सही मानते रहे ।
प्रतिस्पर्धा अपनी उम्र व अपनों के बीच होती है । समय गुजरते गए और समीर अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरी तरह से मेहनत करते रहे । और आखिर उसकी मेहनत रंग लाई ।उसे शिक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई । वेतन ग्रामीण स्तर पर अच्छा था ।
नियुक्ति भी अपने ही जिले में गांव के पास लगभग बीस किलोमीटर दूर हो गई । माॅ॑- बाप के कहने पर शादी के लिए तैयार हो गया । जबकि समीर शादी के प्रति उदासीन था । उसने अपनी मर्जी भी नहीं बताई । माॅ॑- बाप को लगा कि बेटा तो नौकरी में है । घर में बहू मेहनती हो तो घर और थोड़ा - बहुत खेती का काम भी देख लेगी । लड़की औसत चेहरे की थी ।  उसको को भी बुरी नहीं लगी।बस विचारों में मतभेद था ।
समीर अक्सर अपनी पत्नी मानसी को सजने संवरने को कहते । लेकिन मानसी घरों के काम और खेतों के देख-रेख की वजह से अपने लिए फ़ुरसत नहीं निकाल पाती । जिसके कारण समीर उसको कभी अपने साथ ले जाने में असहज महसूस करते थे । उनके स्टाफ में सीधे सादे रहन सहन पर तंज कसते थे । सभी शहरी परिवेश से आते थे । समीर को तो पहले से ही ऐसे रहन सहन पसंद नहीं था । घर में पत्नी को देख उसका पारा और उपर चढ़ जाते । पुराने ख्यालों की लड़की थी । यही उन दोनों के बीच झगड़े का कारण था ।सज संवर लेती तो भी जचती नहीं थी । कुछ भी कहो तो सहज ही अपनी गलती स्वीकार कर लेती । जिससे समीर और ज्यादा थक जाते । उसके पहनावे और चाल-ढाल समीर को जरा भी नहीं भाता था ।
उसके स्टाप में सभी सहकर्मियों की शादी हो चुकी हैं।सबका एक दूसरे के घर उठना, बैठना रहता था । समीर को भी कहते तो बहाने बना देते थे । क्योंकि उसकी पत्नी वैसी नहीं थी । जैसे उनके थे । कहीं हॅ॑स न दें।
आखिर एक दिन उनके स्टाप के साथी अपने बच्चें के जन्म दिन में समीर को बहुत ही ज़िद करने लगा कि वो भाभी को साथ जरुर लाए । समीर कुछ ना बोल सका ।
घर में जाकर अपनी पत्नी मानसी को समझाने लगा कि कोई अच्छी सी साड़ी जरुर पहन ले । ताकि वहां उसको शर्मिंदगी का सामना ना करना पड़े ।

"अगर ऐसी कोई बात हो तो मैं वहां नहीं जाउंगी। यदि मेरी वजह से आपको लज्जा महसूस होती है तो मैं घर में ही ठीक हूं।"मानसी बोली ।

समीर को लगा कि सच तो कह रही है । फिर अपने दोस्तों की परवाह करने लगा । और कुछ सोचें । फिर जाने के लिए तैयार हो गए ।
जन्मदिन की पार्टी में सभी दोस्तों के घरवाले आए थे । सभी लोग अपने में खुश थे लेकिन समीर को लगता कि वहां पर सभी उन्हीं दोनों जोड़ों पर ही ध्यान लगाए हैं । वो सोचते कि मानसी को कुछ भी पहना दो, दिखेंगी देहाती । समीर को ऐसा लगता कि सब उस पर हॅ॑स रहे हैं । खुद की सोच से शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे । रात मुश्किल से गुजरे और सुबह जल्दी घर जाने की छुट्टी मांग ली ।
रास्ते भर पश्चताप करते हुए आ रहे थे । लेकिन मानसी को पार्टी बहुत ही अच्छी लगी । और सभी लोग भी अच्छे थे । वो खुश बहुत थी ।
   मानसी को घरों के लिए कुछ खरीदना था । उसने समीर को गाड़ी रोकने को कहीं । छोटा-सा गांव था । जहां समीर अपनी पढ़ाई की थी । चारों दिशाओं से शहरों को आपस में जोड़ते थे । जिसके कारण वहां का बस स्टेंड छोटे शहर बन गया था । ढेले और छोटी-छोटी जरूरतों की दुकानें थी । समीर उसको एक दुकान में खरीददारी के लिए कहा और खुद ही दुकान के बाहर खड़े रहे । तभी उसकी नज़र एक जानी पहचानी सी चेहरे पर पड़ी । उसने तुरंत ही मानसी को कहा कि खरीददारी करके सामने आना ।
पास जाके देखा तो हैरत में पड़ गए। अरे..! ये तो निशा है।
निशा भी देख के चौंक गई ।  ये गांव निशा का मायका है इसलिए आई थी और आ जा रही है शायद !

पढ़ाई के समय जो दोस्त से बातें नहीं होते ,या फिर  ध्यान नहीं दे पाते हैं । बहुत दिनों के बाद देखने पर एक दर्द, और अपनापन ,आंखों से झलक ही जाते हैं । और गुजरे पल को याद कर,हॅ॑सी फूट पड़ते हैं ! लेकिन समीर अपने आप को सिद्ध करना चाह रहे थे । इसलिए अलग शान में था ।

"समीर...! कितने बदल गए हो" आश्चर्य और खुशी से कहीं।

"और तुम..! ये कैसी शक्ल है।"

"क्यों….? क्या हुआ..!"अचरज से पूछा ।

"कितना बदल गई हो"

"मुझे क्या हुआ है कुछ भी तो नहीं..!"

"वह निशा कहां गई..!जो पढ़ाई के समय में थी..! खूबसूरत .. ! और अब..! कैसी देहाती दिख रही हो..! पहले तो ऐसी नहीं थी ।"
समीर की बातों में उसकी स्थिति से नफरत और अवहेलना साफ नजर आ रही थी । जिसे निशा भी समझ  रही थी ।
वह चुप ही रही । लेकिन उसकी आंखों से अपनापन का भाव साफ़ छलक रही थी ।
समीर उसे देखकर ख़ुश नहीं,तरस खा रहे थे। निशा इधर उधर की ढेरों बातें की । अपने घरों की हालचाल बताया लेकिन समीर का ध्यान उसके चेहरे पर ही था। पैरों पर बिवाई पड़ गई थी। रंग गौर वर्ण से सांवली हो गई थी। निशा एकटक उसे देख रही थी । मानों उसे गलत मान रही थी । निशा को ऐसा लगा कि समीर अभी भी अपनी नजरिया नहीं बदले हैं । किसी के अनुभूतियों को अपने नजरिए से दबाने की कोशिश कर रहे थे । वो अपने आप को निशा से बेहतर दिखाने की कोशिश कर रहा था ।

"तो क्या हुआ समीर मेरी बिवाई पड़ गई तो । मेहनत-मजदूरी करते है । तो क्या मैं बेवकूफ हूॅ॑ । और तुम अच्छे कपड़े -लत्ते पहने हो तो तुम्हें ही बस जीवन का अहसास करने का हक है। तुम आज भी ग़लत हो। कल भी थे । किसी को यदि सच्ची खुशी का अहसास कोई दे पाता है तो वो है उसकी सोच। मुझे नहीं लगती कि तुमने कभी इसे महसूस कर पाए हो । आज मुझे देख के तुम्हारे अंदर खिन्नता उठ रही है तो अपने आसपास को देख के जरुर परेशान हो जातें हो शाय़द।"

निशा बुरा मान के कह रही थी । उसे समीर के बातों का जरा भी परवाह नहीं थी । उसकी आदतों से परिचित थी।

"नहीं, यदि मैं गलत होता तो शायद दुनियां के लोग भी गलत होते । उन पुरुषों और औरतों को देखो जो जीवन को बेहतरीन बनाने की कोशिश करते हैं। ठाठ- बाट के साथ जीते हैं । यही आधुनिकता है । समय की सोच और मांग है। जिसे मैंने अपनी मेहनत से पाया हूॅ॑ । और तुमने...।"

"शहरों के ही नहीं गांवों में भी जीते हैं । जो घरों में रहते हैं ।हम लोगों को खेतों में काम करना पड़ता है । उसके जैसे आराम से चलेंगे, तो हो गया हमारा काम। हमें तो सारे काम जल्दी- जल्दी करने पड़ते हैं । फिर भी समय नहीं बचते हैं ।सरपट चलने से हमारे चाल-ढाल ठीक नहीं दिखते, जीवन का हमें भी अहसास है । अपने बच्चों व परिवार को  मेहनत-मजदूरी से  देने में जो खुशी मिलती है ,तुम्हें वहां तक पहुंचने में अभी समय लगेगा । तुम दूसरों के नजरिए से जिंदगी जीते हो, और हम अपने खुशियों को बढ़ाने के खातिर ।"

उसी समय निशा और समीर की नजर पास आते हुए मानसी पर पड़ीं ।
"यही आपके घर वाली है । बहुत मासुम है ।उस पर कभी गौर नहीं किया होगा । तुमने अपने अंदर प्रेम स्थापित होने ही नहीं दिया । यदि प्रेम की अनुभूति होती तो इतने नाराज़ नहीं होते । धूप में काम करने वाले को देख कर छांव वाले डर ही जाते हैं । किसी के खुशी में खुशी लेने की आदत डालें होते तो इसे दिखाने की जरूरत नहीं होती ।"
समीर निरुत्तर हो गए।

पास आ जाने पर समीर ने निशा और मानसी का परिचय कराया। समीर दोनों को बातचीत करने के लिए छोड़ के पान खाने के बहाने बनाकर चला आया । समीर पछताने लगा कि मेरे सोचने के तरीके और उसके सोचने के तरीके में कितना अंतर है। समीर आज अंतर मुखी हो गया था । निशा और मानसी को समीर दूर से देख रहे थे । दोनों बातचीत करके हॅ॑सने लगते । मेरे सामने मानसी नहीं हॅ॑सती ,या फिर उसकी खुशियों और हॅ॑सी को मैं देख नहीं पाया हूॅ॑ । वह सोचने के लिए मजबूर हो गए थे।  कुछ देर बाद निशा की गाड़ी आ गई । मानसी ने समीर को आवाज लगाई ।
निशा, मानसी से मिल के बहुत खुश थी । बस के खिड़की से निशा, उन दोनों को निहारते रहे । मानों कह रही हो, दोस्ती का मतलब प्रेम ही है । एक दूसरे का ख्याल जो निशा के आंखों में मेरे लिए अपनापन के साथ भविष्य की दुआएं दे रही थी । जिसे समझने में मुझसे भूल हो गए । पछतावा समीर के आंखों में झलक रहे थे, जिसे मानसी की नज़रों से छुपा लिया । निशा के प्रति अपार करूणा जाग गई थी ।

"चलों!अब चलते है।'मानसी बोली
" हां"
और समीर मोटरसाइकिल चालू कर लिया । पीछे मानसी गाड़ी को पकड़ के बैठ गई । अचानक स्प्रीड ब्रेकर आ जाने के कारण मानसी गिरने से बच गई ।तब समीर ने कहा-"मुझे पकड़ लो।"
इतना कहते ही मानसी उससे चिपक के बैठ गई ।उस पल लगा कि वह अब तक की जिंदगी को दूर से देखता रहा । खुशियाॅ॑ अपनों के करीब जाने से ही मिलती है । जिसे समीर आज महसूस कर रहे थे ।
इन्हें भी पढ़ें 👉 पगली -एक लड़की की कहानी 

feeling of love story



Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ