बहू बड़े घर से आई थी । जिसके घर में काम करने के लिए नौकर-चाकर थे । उसके परिवार में कोई भी व्यक्ति खेतों के मेंढ़ों पर कभी कदम नहीं रखे थे। हर काम के लिए नौकर-चाकर रखे हुए थे । इसके बावजूद वह गरीब घर में आ गई ।इसके पीछे का कारण देवेन्द्र था । जो लल्ली को देखते ही उसकी खुबसूरती का दीवाना हो गया था । बहू के घर वाले एक-दो बार गरीब घर में अपनी बेटी को देने से मना कर चुके थे लेकिन देवेन्द्र बार-बार गांव के बड़े-बुजुर्गों को भेज कर कुछ शर्तों पर राजी करवा लिए ।
शर्त यही थी कि उसकी बेटी सिर्फ खाना बना कर देगी । घर से बाहर कभी कोई काम नहीं करेंगी । जिसे देवेन्द्र ने मान लिया । वह छोटे ही सही लेकिन शासकीय नौकरी में था । वह अपने माॅ॑-बाप का अकेला औलाद है । जिसे बड़े लाल दूलार से परवरिश की थी । भगवान की कृपा से उसे नौकरी भी मिल गई है । माॅ॑-बाप ने कभी भी उसे कुछ भी काम करने के लिए नहीं कहे थे । उसे कुछ भी करने की मनाही नहीं थी । उन लोगों का कहना था कि पढ़ें लिखे आदमी को क्या कह सकते हैं । इतना तो पढ़ ही लिया है कि अच्छे बुरे का निर्णय स्वयं कर सकता है । फिर भी शादी के लिए बहुत मना किए थे । इतने बड़े घर की लड़की हमारे घर में नहीं ठीक पाएगी । लेकिन देवेन्द्र किसी की बात नहीं मानी ।
लल्ली ससुराल में आकर दो वक्त की खाना बस बनाती थी । शर्त भी यही था । आखिर क्यों करें । उसके माॅ॑-बाप ने दहेज में बहुत कुछ दिया है । दहेज इतना लाई थी कि देवेंद्र के छोटे से घर में रखने के लिए जगह नहीं बची थी । ये सब चीजों का उपयोग उसकी बेटी ही तो करेगी । यही सोच के उसके माॅ॑-बाप ने इतने सारे समान दिए थे ।
देवेन्द्र के माॅ॑-बाप दो जोड़ी गाय बांध रखे थे । जिसका गोबर निकालना और चारा खिलाना दोनों काम उन्हीं लोगों का था । नौकरी लगने के बाद घर की हालत में कुछ सुधार तो हुआ लेकिन माॅ॑-बाप की स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़। वे लोग आज भी खेतों में काम करने के लिए जाते हैं । उन्हें मना करने वाले कोई नहीं था।
गांव वाले उसे चिढ़ाते थे ।
-नौकरी वाले होकर खेतों में रात-दिन काम करना अब नहीं जजता है । इतने पैसे इकट्ठा करके कहाॅ॑ रखोगे .? आराम भी कर लिया करो। अब उम्र भी नहीं रहा कमाने का । घर में पोतों के साथ खेला करों, गोवर्धन ।
जिसे सुन उसे दुःख बहुत होता था । वह कुछ भी नहीं कह पाते थे । आखिर खुद की बुराई कैसे करें .! सभी के बातों को टाल दिया करते थे ।
देवेन्द्र और लल्ली के बीच मेंं अक्सर लड़ाई होती थी । कभी ब्यूटी पार्लर के नाम पर तो कभी घूमने -घूमाने के लिए । देवेन्द्र का कहना था कि महीने में एकाध बार ही ब्यूटी पार्लर ले जाऊंगा । इतना मेरा वेतन नहीं है कि मैं तुझे हफ्ते में दो बार लें जाऊं । जिस बात पे दोनों मेंं अक्सर बहस हो जाते थे । फिर भी हफ्ते में एक बार जरूर चली जाती थी । उसकी मायके में सभी औरतें जाती है । यही हाल घूमने-वूमने के लिए था । घरों में बोर हो जाती तो आसपास के छोटे शहरों में घुमने चलें जाते थे ।जहाॅ॑ से खाना खा कर वापस आते थे । दोनों खुद में इतना उलझे रहते थे कि कभी माॅ॑-बाप पर ध्यान नहीं दे पाते थे । अपनी ही चिंता थी उन दोनों को । लल्ली का मन कभी भी गांवों में नहीं लगा ।वे अपनी पढ़ाई लिखाई शहरों में ही रह कर की थी । वह कई बार कह चुकी थी । चलों ! शहरों में । यहाॅ॑ अपनी सुविधा और शौक पूरे नहीं होते हैं । लेकिन पैसों की कमी के कारण देवेन्द्र कभी तैयार नहीं हुए । उन दोनों को सही मौके की तलाश थी ।माॅ॑-बाप को सीधे मुॅ॑ह कह नहीं पा रहे थे ।
साल दो साल ही गुज़रे थे । घर में नए मेहमान आ गए ।समय बदलें लेकिन उन दोनों का व्यवहार नहीं बदले । उनका लड़का देखते ही देखते चार साल का हो गया । और उन दोनों को बच्चें की पढ़ाई लिखाई की चिंता होने लगी । लल्ली कभी भी अपनी मायके को नहीं भूली थी । उनका कहना था कि उनके मायके के पास शहर में अच्छा स्कूल है ।माॅ॑-बाप भी मदद करेंगे । जहाॅ॑ बच्चों की अच्छी पढ़ाई लिखाई होती है । लेकिन देवेन्द्र का मन नहीं था । उसका कहना था कि गांव के पास ही छोटा-सा शहर है वहाॅ॑ दाखिला करेंगे । जिस पर लल्ली का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाती थी । बर्तनों को पटकना,, फेंकना शुरू हो जाती थी । देवेन्द्र से कभी सीधी बात नहीं करती थी । अपने मायके में फोन लगाकर सारी दुखड़ा रोती ।
उसके मायके वाले भी अजीब थे । अपनी बेटी का बस परवाह था उसे । घर के अन्य लोगों के बारे में कभी सोचते नहीं थे । गलत सलाह और तरीके बताते थे ।
"ऐसा करते हैं । माॅ॑-बाबूजी को भी साथ ले जाते हैं । एक घर किराए पर और रख लेंगे ।"
लल्ली ने बहुत ही प्यार से देवेन्द्र से कही ।
"कई बार कह चुका हूॅ॑ । मेरा वेतन इतना नहीं है कि शहर में दो- दो घर किराया लेके रह सकूॅ॑ । मुश्किल से यहाॅ॑ गुजारा होता है । वहाॅ॑ के खर्चों के बारे में सोच के ही डर लग जाता है । "देवेन्द्र चिढ़ते हुए कहा ।
"मेरे माॅ॑-बाप समय-समय पर कुछ मदद कर देंगे । बच्चे की पढ़ाई लिखाई में,, हमें और क्या चाहिए ।"
मेरे माॅ॑-बाप ऐसे चीजों के बारे में सोचते भी नहीं । वे लोग जानेंगे या सुनेंगे तब ही भड़क जाएंगे । उनके सामने भूल से भी मत कहना । "
"तब तो कुछ भी नहीं हो सकता । बच्चे वही सीखेंगे जो आसपास में देखेंगे । तुम्हारे घर का माहौल भी मनोनुकूल नहीं है । किसी भी तरह से शिक्षित परिवेश नहीं है । "
"पास के ही कस्बा (शहर) में भर्ती कराएंगे । ऐसा भी नहीं है कि तुम्हारे मायके के पास भी कोई बहुत बड़ा शहर है । मुझे भी तो ऐसे ही साधारण से स्कूल में पढ़ाई- लिखाई करने के बाद भी नौकरी मिल गई है ।" समझाते हुए देवेन्द्र ने कहा । जिसे सुन के लल्ली करवट बदल के सो गई ।
दूसरे दिन से वह मुॅ॑ह फूला ली । घर में किसी से ढ़ंग से बातें नहीं करती थी । माॅ॑-बाप को देख कर तो और चिढ़ जाती थी । इन्ही लोगों की वजह से हम लोग बर्बाद हो जायेंगे एक दिन । हमारे बच्चे का भविष्य अंधेरे में है ।
जिसे देख गोवर्धन को दुःख होता था । एक दिन उसने देवेन्द्र से पूछा-
"क्या बात है बेटा ! तुम लोग आपस में बहुत झगड़ते हो आजकल। कोई परेशानी है तो बताओ । "
कुछ नहीं,,बस मुन्ना की पढ़ाई लिखाई की चिंता है । कहाॅ॑ भर्ती कराए । "
"इसमें क्या सोचना । तुम जहाॅ॑ भी पढ़ा लो । आस-पास में कई स्कुल है ।"
"यही तो परेशानी हैै । हमारे नजदीक के स्कूलों में पढ़ाई लिखाई कहाॅ॑ होती है । "
" कहाॅ॑ के बारे में सोचें हो ?"
" ससुराल के पास जो शहर है,, अच्छी पढ़ाई होती है । सभी कहते हैं "
"वो भी कितना बड़ा शहर है,,,! और नौकरी "
"ट्रांसफर करवा लूॅ॑गा । "
"इतने पैसे कहाॅ॑ से व्यवस्था करोंगे"
"पैसों की चिंता नहीं है । बस आप लोग साथ में जाते तो अच्छा था । ट्रांसफर और मदद बीच-बीच में ससुराल वाले कर देंगे ।"
गोवर्धन समझ गया । बहू की बस चाहत नहीं है । बेटे की समस्या,,, हम दोनों ही है । जब खुद के घरों में सम्मान नहीं दे पाते तो बाहर में ये लोग बाहर में और क्या करेंगे । अभी इतने कमजोर हुए नहीं कि हमें सहारा कि जरूरत पड़े ।
ये सब बहाने है । बहू तो खुश होगी क्योंकि शहर मायके के नजदीक था । दोनों अपनी-अपनी सुविधा देख रहे थे । घर में कुछ दबाव महसूस करते होंगे ।
"ठीक है,जाओ.! "
हालांकि यह बात उदासीनता से कही लेकिन देवेन्द्र खुश हो गया ।
कुछ दिनों बाद उन लोगों ने जानें की अपनी तैयारी पूरी कर ली । बहू किसी से बात कर रही थी
-"आखिर मैं जीत गई । हम लोग आ रहे हैं । "
जिसे सुन बेटे के चेहरों पे मुस्कराहट आ गई । लेकिन एक बाप और एक माॅ॑ हार गई थी । अपने बेटे के खुशियों के आगे में । माॅ॑ की ऑ॑खें नम थी । गोवर्धन को बहुत दुःख हो रहा था । ये लोग रिश्तों को हार जीत में देखते हैं । तभी देवेन्द्र की नजर पिताजी पर पड़ी। शर्म से नज़र झुका ली । इधर उधर देखने लगे ।
माॅ॑ को समझा रहे थे कि वह हफ्ते में दो तीन बार जरूर आएंगे । बच्चें की पढ़ाई की वजह से जाना पड़ रहा है ।
शुरू - शुरू में तो जरूर आया लेकिन बाद में महीना लग जाते हैं या यह भी मुश्किल हो जाता है ।
गोवर्धन की चिंता यही थी कि वे लोग जब बहुत कमजोर हो जाएंगे उस दिन क्या होगा..?अभी तो इतना प्रेम जीवित है । उस समय तक कितना बच पायेगा ..?
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