ठहरों ! ज़रा तुम

ठहरो ! ज़रा तुम
और मुझे जी भर के जीने  दो
स्मरण संजोने दो
मेरे एहसासो को बढ़ने दो
जो अनुराग फूटा है
जरा धार तेज होने दो

ठहरो ! जरा तुम
तुम्हारे जाने के बाद
संसार स्वप्न लगता है
और जिन्दगी बोझिल
मुझे स्वप्न तोड़ने दो

ठहरो ! जरा तुम
जी भर जीने दो
पीने दो
जीवन को
होने दो एहसास-
दिन का,धूप का,
रात का, अंधेरे का,
सुख का,दुःख का,

ठहरो ! जरा तुम
जिन्दगी को जिन्दगी का-
एहसास होने तक
अधुरा रहना नहीं चाहता
बोझिल जीना नहीं चाहता
दुनिया पैर खींचती है
इसलिए ! साथ चलो तुम

ठहरों  ! जरा तुम-
मैं तुझमें खो जाऊ
मेरा अस्तित्व मिट जाए
फैल जाऊँ चारों ओर
प्रेम बनकर
दुनिया ढुंढ़ती रहे
खो जाऊँ तुझमे
इसलिए ,  ठहरों ! जरा तुम

---- राजकपूर राजपूत'"राज'"


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