वक्त

गुज़र रहे हैं दिन अब दिल की बात मनाही में
सूली पे चढ़ते हैं हंस देखो कौवों की गवाही में

_राजकपूर राजपूत'राज'



Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ