Desh bhakti -kavita
अडिग हिमालय में खड़ा है जो सीना तान के
परवाह नहीं है जिसे कभी अपने अरमान के
कही दिवाली कही खेल रहे हैं रंगों की होली
जहाॅ॑ से निकलते हैं मधुर प्रेम अपनो की बोली
उनके हिस्से सुनें सरहद और बंदुको की गोली
खडे़ हिमालय झुक जातें हैं देख इरादें जवान के
अडिग हिमालय में खड़ा है जो देखो सीना तान के
पुरवाई लाती है सन्देश गुजरें हर पल यादों की
खेत-खलिहानों से लेकर बिछड़े पीपल के छांव की
वह दर्द भी अजीब है तन्हाई में सुकून दे जाता है
मत पूछो सीने में अपनो की याद उमड़ जाता है
प्रेम रखो आपस में सभी हम रखवाले सीमा पार के
तसल्ली हुई है जिसे यहाॅ॑ सबकी खुशहाली जान के
अडिग हिमालय में खड़े हैं जो देखो सीना तान के
सदा झुकते हैं हैं शीश जिसकी मां की चरणों में
समर्पित है हर रक्त कण धरती माॅ॑ की सेवा पथ में
बस एक ही कामना है कि लड़े कोई ना आपस में
खुशहाली रहे सदा सबके घर परिवार और देश में
ठंण्ड हो या हो गर्मी जो खड़े हुए हैं बंदुक उठा के
नमन हैं अभिनंदन है तुम्हें वीर रखवालों मेरे देश के
अडिग हिमालय में खड़े हैं जो देखो सीना तान के
---राजकपूर राजपूत
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