इतने करीब हो मेरे अपलक तुम्हें देखता हूं

इतने करीब हो मेरे अपलक तुम्हें देखता हूॅ॑
दोस्तों और दुश्मनों की कहाॅ॑ खबर रखता हूॅ॑

तेरी नज़रें मिल जाए तो धक से रह जाता हूॅ॑
समझ नहीं मुझे भोलेपन से नजरें फेर लेता हूॅ॑

नादान है दिल बयाॅ॑ नहीं कर सके अपना हाल
अब कैसे कहूॅ॑ बेइंतहा प्यार जो तुमसे करता हूॅ॑

उम्मीद नहीं है मुझे इस दुनिया से कुछ भी राज
बस उसकी सूरत को पलकों में सजा के रखता हूॅ॑
  __राजकपूर राजपूत'राज'

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