सुविधा से प्रेम करने वाले -कहानी A Story About Convenience

सुविधा से प्रेम करने वाले -कहानी A Story About Convenience 

एक बच्चे ने अपने पिता से पूछा—

“दुनिया में शांति क्यों नहीं है?”


पिताजी ने कहा—

“क्योंकि हर व्यक्ति अपने ही हिसाब से चलना चाहता है।”


बच्चे ने पूछा—

“क्यों?”


पिताजी बोले—

“सुविधा!”


बच्चा फिर बोला—

“सुविधा? क्या वह इतनी खतरनाक है?”


पिताजी ने उत्तर दिया—

“हाँ। सुविधा हर किसी को केवल अपनी ही स्वीकार्य होती है; दूसरों की सुविधा किसी को स्वीकार नहीं।”

A Story About Convenience 

बच्चे ने फिर पूछा—

“तो न्याय कहाँ है?”


पिताजी बोले—

“सुविधा में।”


बच्चा चौंका—

“कैसे?”


पिताजी ने कहा—

“लोग वही बोलते और करते हैं, जिसमें उन्हें अपनी सुविधा दिखाई देती है।”


यह सुनकर बच्चा शायद दुनिया की चाल–चलन समझ गया। इसलिए चुप हो गया । 


-राजकपूर राजपूत 


एक बच्चे ने अपने पिता से पूछा—

“दुनिया में शांति क्यों नहीं है?”


पिताजी ने कहा—

“क्योंकि हर व्यक्ति अपने ही हिसाब से चलना चाहता है।”


बच्चे ने पूछा—

“क्यों?”


पिताजी बोले—

“सुविधा!”


बच्चा फिर बोला—

“सुविधा? क्या वह इतनी खतरनाक है?”


पिताजी ने उत्तर दिया—

“हाँ। सुविधा हर किसी को केवल अपनी ही स्वीकार्य होती है; दूसरों की सुविधा किसी को स्वीकार नहीं।”


बच्चे ने फिर पूछा—

“तो न्याय कहाँ है?”


पिताजी बोले—

“सुविधा में।”


बच्चा चौंका—

“कैसे?”


पिताजी ने कहा—

“लोग वही बोलते और करते हैं, जिसमें उन्हें अपनी सुविधा दिखाई देती है।”


यह सुनकर बच्चा शायद दुनिया की चाल–चलन समझ गया। इसलिए चुप हो गया । 


-राजकपूर राजपूत 



कुछ कविताएं -


प्रेम कितना सरल लगा मुझे,

तुने मुझे स्वीकारा

बड़ी सहजता से,

जैसे बरसों की जान–पहचान हो।


इसलिए मैं

सहज ही तुम्हारे साथ आ गया।

जब तक तुम साथ थे,

मैं भी साथ था

उन्हीं अहसासों में,

जहां दोनों की जरूरत थी,

जीवन की खुशियां थीं,

जिसे हमने महसूस किए।


और लगा

यही सुरक्षित घेरा

जीवन भर बना रहे।

जब तक जान रहे

चलें साथ,

लेकर हाथ,

कई कदम

जीवन के सफर की ओर।


लेकिन....

उस समय तुम ठिठक गए,

यार फिर रास्ता भटक गए।

तुम चलते गए

मेरा हाथ छोड़कर।


शायद! तुम्हें कुछ और अहसास हुआ,

जो तुम्हारे लिए खास हुआ।

इसलिए मुझे रुक जाना जरूरी लगा।

हालांकि दुःख लगा,

फिर भी मैंने तुम्हें जाने दिया।


क्योंकि यह प्रेम न हो कर

समझौता हो जाता,

शर्तों पर टिककर

प्यार खो जाता।

बन्धन में तो

मेरा प्यार मर जाता—

जो मैं नहीं चाहता है।


इसलिए मुझे प्रेम सरल लगा

तुम्हें जाने देना !!!!




कुछ तो बचा है मेरे पास—

मेरी स्मृतियों में तुम्हारा अहसास।
तुम्हें नहीं पा सका, ये अलग बात है,

लेकिन मेरी स्मृति में होती है मुलाकात है 


लेकिन मेरी तन्हाइयों में तुम ही हो ख़ास।

वैसे तो मैं सबसे मिलता-जुलता हूँ,
फिर क्यों लगता है कि मैं अकेला हूँ?
रुक-रुककर ढूँढ़ने लगता है मेरा मन—
सहसा उभर आती है तुम्हारी छवि।

तब लगता है मानो वहीं हूँ, 

तेरे पासकुछ तो बचा है 

जैसे मेरे पास।

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